“एक कैदी की आत्मकथा”
मेरा नाम साहिल सोलंकी है। मुझे एक जुर्म जो मैंने किया ही नहीं उसकी उम्र कैद की सजा हुई थी। बात काफी पुरानी है, जब मैं लगभग 30 वर्ष का था, अपने गांव गिरधरनगर में रहता था। मेरी शादी हो चुकी थी। मेरी पत्नी का नाम संध्या था और मेरे दो बच्चे थे एक लड़का वह एक लड़की। लड़के का नाम सुबोध और लड़की का नाम निहारिका था।
मैं अपने गांव की एक फैक्ट्री में काम करता था। इतना कमा लेता था कि घर की गुजर बसर अच्छे से कर लेता था। जिंदगी खुशी से बीत रही थी। मैं अपनी दुनिया में अपने परिवार के साथ बहुत खुश था।
हमारे गांव में एक जमीदार जिसका नाम दिलावर सिंह था वह भी रहता था। एक बाहुबली व्यक्ति था। पूरे गांव में उसके नाम की दहशत थी। वह जो चाहता था वही गांव में होता था। किसी की मजाल भी नहीं थी जो उसके खिलाफ बोल पाता। उसके काफी गोरखधंधों का कारोबार था। उसका एक लड़का था जिसका नाम रोशन सिंह था। रोशन सिंह बहुत ही बिगड़ैल किस्म का लड़का था। हर गलत काम करना उसका शौक था। अपने पिता का नाम का नाजायज फायदा उठाता और सारे गलत काम करता था।
मेरी जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था सिर्फ उस रात से पहले। उस रात फैक्ट्री में ज्यादा काम होने के कारण मुझे काफी देर हो गई थी। फैक्ट्री का काम खत्म करने के बाद मैं पैदल अपने घर की ओर जाने लगा। मेरे घर और फैक्ट्री के बीच एक काफी घना जंगल पड़ता था। रात में उस घने जंगल में मुझे एक लड़की के चीखने की आवाज सुनाई दी। वह लड़की जोर जोर से चिल्ला रही थी बचाओ मुझे बचाओ मुझे। मैं उस लड़की की आवाज की ओर बढ़ने लगा। कुछ ही दूर बढ़ते ही मैंने जो दृश्य देखा उससे मेरे हाथ पैर फूल गए। मैं देखता हूं हमारे गांव की लड़की जिसका नाम लक्ष्मी था, उसे रोशन सिंह और उसके चार दोस्त घसीटते हुए कहीं ले जा रहे हैं। मैंने रोशन सिंह को पूरी तरह पहचान लिया और मैंने बहुत ही तेज आवाज में रोशन सिंह को रोकने को कहा। मेरी आवाज सुनते ही उसके चारों दोस्तों ने मुझ पर हमला बोल दिया। मैंने उस लड़की को बचाने की बहुत ही कोशिश की, लेकिन मैं अकेला उन लोगों का सामना नहीं कर पाया। उन लोगों ने मुझे लाठी-डंडों से बहुत पीटा जिससे मैं एकदम बेहोश हो गया था। वह लोग मुझे मरा हुआ समझकर मुझे वही छोड़ गए। और लक्ष्मी को उसी घने जंगल में कहीं ले जा कर उसकी बेरहमी से हत्या कर दी।
लक्ष्मी के बारे में बताता हूं। लक्ष्मी एक चुलबुली 16 वर्षीय लड़की थी। वह हमारे गांव के बैजू नाथ हलवाई की बिटिया थी। लक्ष्मी कक्षा 10 की छात्रा थी और वह पढ़ने में बहुत ही अच्छी थी। बैजू नाथ हलवाई की भी पूरे गांव में बहुत इज्जत थी। पूरा गांव सुख दुख में हर किसी के साथ होता था।
अगली सुबह जब मुझे कुछ होश आता है, मैं अपने आप को उस घने जंगल के बीच में पाता हूं। काफी मुश्किल से मैं उस जंगल को पार कर पाता हूं। लड़खड़ाते हुए हमारे गांव के वैद्य जी के पास उपचार के लिए जाता हूं। वैध जी मेरी हालत देखते ही बहुत ही घबरा जाते हैं। मैं भी बहुत सहमा हुआ था। वैध जी के इलाज के दौरान मैं उनसे अपनी पत्नी को उनके यहां बुलवाने का अनुरोध करता हूं। वैध जी अपने बेटे को मेरे घर भेज कर मेरी पत्नी को बुलवाते हैं। संध्या मेरी पत्नी मुझे देखकर बहुत रोने लगती है। और उधर बैजू नाथ अपनी बेटी लक्ष्मी की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस थाने में दर्ज कराता है। पुलिस लक्ष्मी को ढूंढने में लग जाती है।
इलाज के कुछ देर बाद मैं अपनी पत्नी के साथ अपने घर आ जाता हूं। कुछ घबराता हुआ अपनी पत्नी को रात का सारा किस्सा सुनाता हूं। संध्या भी काफी डर जाती है। और मुझसे कुछ दिनों तक फैक्ट्री पर ना जाने को कहती है। लेकिन मेरा दिल तो कुछ और ही कह रहा था। मैं लक्ष्मी की उन आंखों को नहीं भूल पा रहा था जो मुझसे अपने को बचाने की भीख मांग रही थीं। फिर भी मैंने अपनी पत्नी की बात मानी और कुछ दिनों तक काम पर नहीं गया। पर मैं उस बेचैनी के मारे ना सो रहा था ना जी रहा था। बस हर बार यही सोचता रहता कि कैसे लक्ष्मी को इंसाफ दिलवाऊं।
लगभग उस हादसे से एक हफ्ते बाद किसी की सूचना पर पुलिस को गांव की नदी में लक्ष्मी की लाश बरामद हुई। पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई थी। हर कोई बहुत सदमे में था और सबसे ज्यादा मैं। मैंने फैसला कर लिया था कि मैं उस मासूम लक्ष्मी को इंसाफ दिला कर रहूंगा। उसके कातिलों को मौत की सजा दिलवाऊंगा।
मैं अपनी पत्नी को बिना बताए थाने पहुंचता हूं और कोतवाल को सारा वाक्य सुनाता हूं। कोतवाल मेरी बात पर बिल्कुल विश्वास नहीं करता है। और मुझे तुरंत घर जाने को कहता है। मुझे धमकी भी देता है कि मुझे जेल में सड़वा देगा। क्योंकि मैं एक गरीब आदमी हूं और दिलावर सिंह बाहुबली। पुलिस पूरा साथ दिलावर सिंह का देती है। दिलावर सिंह इस बात से मुझसे दुश्मनी मान लेता है और एक रात जब मैं फैक्ट्री में होता हूं मेरे घर धावा बोलता है और मेरी पत्नी संध्या मेरा बेटा सुबोध मेरी बेटी निहारिका को अगवा कर लेता है। फैक्ट्री में ही उसका एक आदमी मेरे लिए दिलावर का संदेश लाता है कि मेरा परिवार उसके कब्जे में है और अगर मैं उनकी सलामत चाहता हूं तो लक्ष्मी के कत्ल का इल्जाम अपने सिर ले लूं। मैं दिलावर के आगे कुछ भी नहीं था। वह हर चीज में मुझसे बहुत बड़ा था।
मैंने अपने परिवार को बचाने की खातिर लक्ष्मी के कत्ल का इल्जाम अपने सिर ले लिया। पूरा गांव सारे लोग मुझसे नफरत करने लगे। दिलावर सिंह ने मेरी पत्नी और मेरे दोनों बच्चों की भी हत्या कर दी। मुझे कोर्ट ले जाया गया जहां जज साहब ने मुझे उम्र कैद की सजा सुनाई। मेरी सारी दुनिया उजड़ चुकी थी मैं बर्बाद हो चुका था। कोई भी मेरे साथ नहीं था।
जेल में कुछ अच्छे चाल चलन के कारण मेरी सजा पूरी होने के दो वर्ष पहले जेल से रिहा कर दिया गया। पर अब मैं बुढ़ा हो चुका हूं और अपने गांव जाता हूं । मेरी आंखों के सामने वह मंजर नजर आ जाता है जो मेरे साथ बीता था। जेल में मैं उस भगवान से बस यही दुआ मांगता रहा कि जिस दिलावर सिंह और उसके बेटे रोशन सिंह ने मेरी दुनिया उजाड़ी है ,उसका नामोनिशान ,सब कुछ मिट जाए। कहते हैं ना ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं , दिलावर सिंह और उसके पूरे परिवार की एक हादसे में मौत हो जाती है उसका सब कुछ खत्म हो जाता है। अब मेरी सूखी आंखों से पानी गिरता है उस ईश्वर को हाथ जोड़कर धन्यवाद देता हूं, जो मेरे साथ अन्याय हुआ और उस अन्याय का बदला मेरे भगवान ने उस दिलावर सिंह और उसके बेटे रोशन सिंह से ले लिया। मैं रोता हूं और रोता हूं अपने परिवार को याद करता हूं और रोता हूं व आगे अपनी बची जिंदगी जीने के लिए कहीं निकल जाता हूं। अब मैं सुकून से अपनी मौत का इंतजार करूंगा।
यह थी मेरी कहानी जो मेरे साथ आपने भी जी होगी।