एक कुण्डलियां छंद-
एक कुण्डलियां छंद-
रुपया-पैसा सब जगह,बिन पैसे नही कुछ।
पैसा गया त बूझ लो, बिगड़ा जग का रूप।।
बिगड़ा जग का रूप,जगत सम्मान न देता।
टेढ़ा मुह सब करें, घरो-परिवार-चहेता।।
‘प्यासा’ कर ले काम,न कोई इसके जैसा।।
होंगे तेरे पास, तभी तो रुपया-पैसा।।
-‘प्यासा’