एक कुंडलियां छंद-
एक कुंडलियां छंद-
मुश्किल-दुर्लभ हैं बहुत, राजनीति में मित्र।
सत्य मुँह के भी झूठे,होते यहां विचित्र।।
होते यहां विचित्र, स्वार्थ से बड़ा नही कुछ।।
हुआ जुआ सा खेल, युधिष्ठिर हारे सचमुच।।
कह ‘प्यासा’ कविराय, पवित्रता हुआ असुलभ।
गन्दा-गन्दा दिखा, सफाई मुश्किल -दुर्लभ।।
– ‘प्यासा’