एक और सुनहरी शाम !!
एक और सुनहरी शाम
डूबते सूरज की स्वर्ण किरणों के साथ
धीमी हवा के झोकों में डोलते पेड़ पौधे
मानो दिन की भर चटक धूप सहकर
ताप कम होने पर आनंदित हों
धूप धीरे धीरे क्षितिज के ढलान में
बहती जा रही है
आस पास के सभी रंग शिथिल होकर
स्याह रात के आगमन का
उदघोष कर रहे हैं
कुछ ही पल में सब धूमिल होकर
रात्रि की काली चादर से ढक जाएगा
पंछियों के घर लौटने से पहले का संवाद
बड़ा नाटकीय किंतु गूढ़ लगता है
अगली शाम भी क्या यूं ही आएगी !!
विवेक जोशी “जोश”