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12 Sep 2017 · 2 min read

*=* एक और गृहस्थी *=*

“अरी गीता। आज स्टोर की सफाई करनी थी। तू घर की रोटी पानी निबटा कर दोपहर को आ जाना जरा।”ऋचा ने आवाज दी। दीपावली में अब कुछ ही दिन बाकी थे।
“जी अच्छा बीबी जी।”
बोलकर गीता फुर्ती से पोंछा लगाने में जुट गयी। बहुत उत्साहित थी वह बीबी जी के स्टोर वाले कमरे को लेकर।
तीन बच्चों व शराबी पति की जीविका का सारा दारोमदार था बेचारी गरीब पर।समझदार स्त्री थी। खून पसीना एक करके पांच जनों का पेट पालती, तिस पर तीनों बच्चों की पढ़ाई व बीमार पति की दवाइयों का खर्चा अलग।
बीबी जी के स्टोर वाले कमरे की सफाई क्या की। गीता की तो जैसे लाटरी ही लग गई।
“अरी गीता। ये पुराने परदे और चादरें हटा । ढेर लगा हुआ है। नये का नंबर ही नहीं आ पाता। बाहर पटक इन्हें। ”
” ये पुराना गैस चूल्हा हटा दे। कबाड़ी को दे देंगे। ”
” गीता बच्चों के ये पहले के कपड़े हैं। नये हैं मगर फैशन में नहीं हैं। तू चाहे तो बच्चों के लिए रख ले।”
“जी अच्छा बीबी जी”
“अरे यह टंकी उठा कर बाहर रख दे। साहब के आफिस वाला चपरासी है न नरेश। उसे दे देंगे। काम आ जाएगी उसके। ”
एक बार सफाई से बीबी जी को फुरसत हो जाए फिर वो उनसे सारे सामान खुद के लिए ही मांग लेगी। गीता मन ही मन बुदबुदाई।
अंततः प्लास्टिक की बाल्टी, नाश्ते की प्लेटें, पुराने स्टील के ढेरों बर्तन, बीबी जी की कई नयी साड़ियां (वे साड़ी कभी कभार पहनती थीं ), साहब के कई शर्ट पेण्ट, गरम कपड़े, सजावटी खिलौने, शो पीसेज, बच्चों के टिफिन व स्कूल बैग, कई चप्पलें, पुरानी पानी की बोतलें, पुराना रेफ्रिजरेटर व एक मजबूत पुराना सोफा आदि का ढेर लग गया था।
ये सारी चीजें बीबी जी की निगाहों में यूज लैस थीं जो या तो किसी को दी जा सकती हैं या इन्हें फेंकना है।
झाड पोंछ कर गीता ने सारा सामान जमाने के बाद बड़े खुशामदी लहजे में कहा -” बीबी जी अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूँ” “हां हां बोल ना”
“बीबी ये सारा सामान मैं ही ले जाऊं। ”
” हां क्यों नहीं। ले जा गीता। मेरा सरदर्द मिटे।
और इस बार गीता का घर दीपावली पर कुछ अलग ही तरह सजा था। बीबी जी के स्टोर से उसकी पूरी गृहस्थी जो निकल आई थी। बीबी जी हर वर्ष की तरह दीपावली पर पहुंची तो उसके घर की कायापलट और सजावट देख कर दंग रह गई। अकस्मात उनके मुख से निकला-“वाह गीता। तेरे घर की तो कायाकल्प हो गई।बड़ा सुंदर सजाया है तूने। “गीता बोल उठी- “बीबी जी ये सब आप की बदौलत हुआ।”
ऋचा घर जाते समय सोच रही थी – हम उच्च वर्गीय लोग स्टेटस सिम्बल मानकर फिजूलखर्ची में अपने स्टोर रूम में कई गृहस्थियां व्यर्थ ही स्टोर कर लेते हैं जो गीता जैसे किसी जरूरतमंद के लिए अनमोल साबित हो सकती है।

—-रंजना माथुर दिनांक 12/09/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
424 Views
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