एक औरत
एक औरत
पृथ्वी का बोझ थामी रहती है
प्रेम – समर्पण की नदियाँ
स्पर्श करती हृदयों के गहराइयों के
समुद्र सा महासागर सा__
पत्तों जैसी पालती हमें
फिर यहीं पत्ते नव्य निर्माण लिए
स्वं अस्तित्व को मिटा देती
जैसी एक औरत
अपने बच्चें लिए
अपनी देह सौन्दर्य को त्याग देती
और आनन्द लेती मातृसुख का
बच्चों की किलकारियाँ
उन्हें फिर से बच्चा बना देती।