एक उम्र बहानों में गुजरी,
एक उम्र बहानों में गुजरी,
क्यूँ न अब इन्हें छोड़ भी दे।
गर हार हुई खुद की गलती से
तो क्यूँ न इसे स्वीकार करे।
गर थोड़ा परिवर्तन कर लेगें
यकीनन ज़िंदगी बदलेंगे।
गर कांटो से न घबराए,
तो अपनी राह भी गढ़ लेगें।
तो चलो प्रण अब लेते है,
बहानों की तिलांजलि देते हैं ।
गर सीख लिया अपनी गलती से
तो विजय मार्ग प्रशस्त हम कर लेंगें