एक आकार
एक आकार
फितरत है पहचान तुम्हारी ,
फितरत जीवन का आधार ।
‘गर फितरत है नेक तुम्हारी ,
दीवाना है सारा संसार ।
अपना और पराया जग में ,
फितरत रिश्तों का आधार ।
फितरत से मानव होता मानव,
फितरत से होता पशुता व्यवहार ।
फितरत से मित्र बना है मित्र ,
फितरत से जीत बनी है हार ।
फितरत से स्नेहिल दुनिया सारी ,
फितरत से होता कांटों का हार ।
‘स्वच्छंद’फितरत से मैं मैं तुम तुम हो,
फितरत से होते एक आकार ।।