एक अबूझ पहेली
*त्रिदेव (ब्रह्मा/विष्णु/महेश)
*श्रीकृष्ण *श्रीराम
* सतयुग *त्रेतायुग *द्वापरयुग *कलयुग
*सनातन *शाश्वत क्या है ?
मुक्ति/मोक्ष क्या है ?
विचारक/दार्शनिक किस श्रेणी के.
आस्तिक/नास्तिक
क्या शिक्षक गुरु तुल्य है.
क्या कथा वाचक खुद परम तत्व को जानता है.
खुद को खोजने के दो मार्ग है.
जिसके उद्भव अनेक हैं.
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एक अंतस से बाहर की ओर.
एक बाहर से अंतस की और.
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यानि एक आक्रामक/दूसरा समर्पित-भाव
एक नाथ/दूजा दास.
दास प्रेम का आविर्भाव है/मूल उद्गम.
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किसी ने कोई अवतार नहीं लिया.
यह तथाकथित धर्मों की परिकल्पना मात्र हैं.
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कृष्ण/राम/रहीम/मुहम्मद/मसीह सबने अपना जीवन जीवंत किया.
बस फिर लॉबिंग/कुछ चालाक लोग इक्ठ्ठा होकर जीवन से दूर ले जाकर भेद को जन्म देकर जीवन के दुश्मन हो गये.
यहीं विध्वंसक धारणा की मानसिकता.
और प्रश्न लालसा पर ..आप कैसे सोचते हैं
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प्रकृति वा अस्तित्व के अपने खुद के रहस्य और चक्र है. ये अपनी व्यवस्था खुद निर्धारित करते है.
बसरते मनुष्य विकास को आधार बनाने के साथ-2 ब्रह्माण्ड की योजनाओं का ध्यान रखें.
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आग से लेकर अंतरीक्ष वा तत्वों की खोज़ और उनका क्रियान्वयन मनुष्य की अपनी खोज़ है.
मनुष्य ने सभ्यता एवं संस्कृति की खोज़ का आधार उसकी आवश्यताऐं रही है ना कि किसी तथाकथित भगवान की देन.
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आज का मनुष्य सोचने लायक भी नहीं.
कर्मण्येवाधिकारस्ते .. को तो तब समझेगा.
अस्त्र/शस्त्र मंत्र/तंत्र रोग/रुग्ण-चिकित्सा
आदान/प्रदान व्यवसाय व्यवहार
काम/क्रोध/मोह/लोभ/मद
ईर्ष्या/नफरत/
धी/धृति/स्मृति
भाषा/व्याकरण/साहित्य
इतिहास/वर्तमान/भूत/भविष्य
पराधीनता/स्वावलंबन/जवावदेही/संस्कार/विकृति/संशोधन
सबकुछ तो इंसान के हाथ में.
पारस भी / हंस-हंसा
विवेक/ज्ञान/बोध/संसार/सृष्टि/वृष्टि