“एक अत्याचार”
“एक अत्याचार”
***************
कौआ का कौआ खाए,
तोते का भी सब कौआ।
वो तोता जब भी राग गाए,
कांव-कांव करे सदा कौआ।
यहां पसरा ऐसा गणतंत्र है,
ज्ञान से कुछ न होगा बउआ।
ये आजाद हिंद का इंसाफ है,
ज्ञानी तोता होना जैसे पाप है।
इतना स्वार्थ कभी ठीक नहीं,
कौन समझाए ये सटीक नही।
हर ज्ञान को सही जगह दो,
विधिक ठेकेदारों से ये कह दो।
ज्ञान को जो यों ललकारोगे,
तो विध्वंसक ज्ञान स्वीकारोगे।
कैसे बचेगा अब अपना जहां,
अज्ञानी जो घुसेंगा जहां-तहां।
ये है अटपटा आचार-विचार,
जो तोते पे हो यों अत्याचार।
~~~~~~~~~~~~~~~~
स्वरचित सह मौलिक;
✍️पंकज ‘कर्ण’