एक अच्छा काम
आज सुबह से मन में था,
कि कुछ अच्छा काम किया जाए।
पर समझ नहीं आ रहा था कि
आख़िर करें तो क्या करें!
सो हुआ यूँ, कि किया तो कुछ भी नहीं।
लेकिन जो ये अच्छा करने का विचार था,
इसमें इतनी उमंग थी कि हर व्यक्ति से मैं खुल कर,
ख़ुश होकर मिला।
अब दिन ख़त्म हो गया,
बिस्तर पर लेटे लेटे समझ में आया,
कि शायद जो किया वहीं सबसे अच्छा काम किया।
“सहल”