एकलव्य
हिरण्य धनु का पुत्र हैं, जाति उसकी निषाद ।
द्रोण पास लेने चला,धनुष विद्या प्रसाद ।।१।।
द्रोण ने देख जाति को, कर दिया अस्वीकार ।
सच्ची थी उसकी लगन, मान न पाया हार ।।२।।
गुरु की बनाकर प्रतिमा, शुरू किया अभ्यास ।
कष्टों का कर सामना, परीक्षा हुआ पास ।।३।।
एक दिवस की बात हैं, भौंक रहा था श्वान ।
आवाज उसकी सुन सुन, भंग हुआ था ध्यान ।।४।।
बाणों से मुँह भर दिया, लगने न दिया घाव ।
देख अर्जुन अचरज में,उड़ गए हावभाव ।।५।।
सोच कर गुरू द्रोण यह , वीर धनुर्धर कौन ।
देखी जब मूर्ति अपनी ,हो गए सभी मौन ।।६।।
जब देखा गुरुदेव को, खुश हुआ एकलव्य ।
चरण पकड़ गुरुदेव के,सम्मान किया भव्य ।।७।।
मन ही मन गुरुदेव को, आया वर वह याद ।
अर्जुन सर्वश्रेष्ठ बने, देता आशीर्वाद ।।८।।
मुझको तुम गुरु मानते, दक्षिणा करो दान ।
अँगूठा दिया काटकर, शिष्य का रखा मान ।।९।।
एकलव्य पर नाज है, रहेगा सदा नाम।
वह वीर धन्य धन्य हैं , कर गया अमर काम ।।१०।।
।।।जेपीएल।।