* ** ऋतु पावस ***
ऋतु पावस थी निकट अमावस थी
यौवन की वह घटा-छटा विकट थी
मन- मयूर-बन नाचा आज बहुत
नटराजन-लटा लिपटी मुखचन्द्र थी ।।
चाँद को देखकर चंद्रमुखी चकित सी
हेर- हेर फेर-फेर चित्र लिखित सी
मृगनयनी कटि-केहरि उरोज बिम्बा सी
चकित हेर चन्द्र को चन्द्र-चकोर-सी ।।
मन महसूस कर अपने ज़िगर को
ना याद कर अपने फिर फ़िगर को
जो जाना था सो चला गया अब
भूल मत मन अपने इस दिल को।।
?मधुप बैरागी