ऋतु बसन्त आने पर
खिल उठते हैं चेहरे, ऋतु बसन्त आने पर।
जैसे महकती हैं हवाएं, फूलों के खिलने पर।।
खिल उठते हैं चेहरे——————-।।
पीले रंगों के नजारें, जमीं पर दिखते हैं।
हर बदन पर वस्त्र पीले, हमको दिखते हैं।।
झूम उठते हैं कदम, ऋतु बसन्त आने पर।
जैसे नाचती है हवाएं, फूलों के खिल जाने पर।।
खिल उठते हैं चेहरे——————-।।
पीले सरसों के फूलों से, दुल्हन बनती है धरती।
ऐसा ही रूप- श्रृंगार, इस दिन नारी भी करती।।
बज उठता है संगीत, ऋतु बसन्त आने पर।
जैसे गाती हैं हवाएं, फूलों के खिल जाने पर।।
खिल उठते हैं चेहरे——————-।।
ऋतुओं का राजा भी, कहलाती है ऋतु बसन्त।
नया जोश- नया खुशियां, लाती है ऋतु बसन्त।।
बनते हैं ख्वाब सुनहरे, ऋतु बसन्त आने पर।
जैसे बदलते हैं नजारें, फूलों के खिल जाने पर।।
खिल उठते हैं चेहरे——————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)