ऋतुराज
हरित प्रकृति भई, मृदुल प्रवृत्ति भई
अतुल उछाह लिये सकल समाज है
नवल वसन धरि तरुवर खिलि गयो
मधुर मिलन कर सजि गयो साज है
अधर अमिय रस, नयन मदन वश
लाज से कपोल पर लाल भई लाज है
मह मह महकि ‘असीम’ रहे तन मन
खिलत मुदित मन आयो ऋतुराज है
©️ शैलेन्द्र ‘असीम’