ऋतुराज बसंत (गीत)
ऋतुराज बसंत (गीत)
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गुनगुनाती धूप कहती आ गए ऋतुराज हैं
(1)
छोड़ आसन उठ चुकी है शीत लहरी बेसुरी
अकड़ू घमंडी यह सदा लगती रही सबको बुरी
ले रहे अँगड़ाइयाँ , पौधे अदा से आज हैं
गुनगुनाती धूप कहती आ गए ऋतुराज हैं
(2)
उड़ने लगे पक्षी गगन में मंद- सी मुस्कान से
गूँजता धरती-गगन, संगीत के मधु गान से
दिख रहे अब कुछ नए -से देह के अंदाज हैं
गुनगुनाती धूप कहती आ गए ऋतुराज हैं
(3)
प्यार की भाषा हवा में ,डोलती बढ़ने लगी
मौन से मुखरित हुई संवाद कुछ गढ़ने लगी
बज रहे भीतर छिपे बंदी हृदय के साज हैं
गुनगुनाती धूप कहती आ गए ऋतुराज हैं
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रचयिता: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451