*ऋण ले , घी पी ,आत्महत्या कर ( व्यंग्य )*
ऋण ले , घी पी ,आत्महत्या कर ( व्यंग्य )
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ऋषि चार्वाक में तो केवल इतना ही कहा था कि ऋण लो और घी पियो । तीसरी बात मैंने उसमें जोड़ दी कि आत्महत्या करो। यह तो होना ही था । जब आदमी कर्ज लेकर घी पिएगा तो आत्महत्या की नौबत भला कैसे नहीं आएगी ? कर्ज लेकर सूखी रोटी खाना तो समझ में आता है लेकिन भाई लोगों की आदत ही ऐसी पड़ गई है कि जब तक कचौड़ी और पराँठा न खाएँ, उनके गले से भोजन का कौर नीचे नहीं उतरता । आज तक किसी भी बैंक से किसी व्यक्ति ने अपने पेट की भूख मिटाने के लिए कर्ज नहीं माँगा। कोई भी व्यक्ति एक किलो आटा ,चावल या दाल कर्ज पर लेने के लिए बैंक नहीं गया। जितने लोगों ने बैंकों से कर्ज लिया, वह सब धनवान व्यक्ति थे । अगर किसी के पास 50 करोड़ थे तो उसने ₹500 करोड़ का कर्ज इसलिए लिया कि उसके पास 550 करोड़ हो जाएँ। अगर एक व्यक्ति के पास दस लाख की कार है तो उसने जोड़-तोड़ इस बात के लिए किया कि उसके पास एक करोड़ रुपए की कार बैठने और घूमने- फिरने के लिए हो जाए ।
बहुत से लोग कहेंगे कि कर्ज लेकर घी पीने वाली बात समझ में नहीं आती । घी भला कौन पीता है ? लेकिन घी पीना तो एक मुहावरा है । इसका मतलब यह नहीं है कि आदमी कर्ज लेकर रोजाना 100 ग्राम घी कटोरी में डाल कर पीता है । इसका अभिप्राय यह है कि व्यक्ति इतना खर्च करता है और इतनी विलासिता के साथ जीवन जीता है कि उसे कर्ज भी लेना पड़ता है और कर्ज चुकाने के लिए वह असमर्थ हो जाता है। करोड़पति और अरबपति लोग जब आत्महत्या करके अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं, तब एक प्रश्न तो मन में उठता ही है कि आखिर इन धनी- मानी व्यक्तियों को ऐसी क्या कमी हो गई थी कि इन्हें आत्महत्या करनी पड़ी ! यह तो धनवान लोग थे ! इनके पास अपने मकान , कारोबार तथा अच्छा- खासा बैंक बैलेंस होता था। यह इतने कर्जदार कैसे हो गए कि दिवालिएपन की नौबत आ गई ?
तब हम विचार करते हैं कि यह धनवान लोग केवल इसलिए दिवालियापन की स्थिति को प्राप्त हो गए क्योंकि इन्होंने कर्ज लेकर घी पीने की आदत डाल ली । इनके पास न इनकी गाड़ी बची , न बंगला ,सब कुछ कर्ज में बेचने के बाद भी यह कर्ज चुका पाने की स्थिति में नहीं रहे । कर्जदाताओं ने कहा कि अब हम आपको कर्ज देकर घी नहीं पिलवा सकते । अब बेचारे क्या करें ? सूखी रोटी खा नहीं सकते और अब कर्जदार कर्ज देकर घी पिलवाने की स्थिति में भी नहीं हैं। अतः कर्ज लिया, घी पिया और उसके बाद आत्महत्या करने के लिए विवश हो गए । फिर चर्चा चलती रहती है कि एक जमाने के इतने धनाढ्य व्यक्तियों ने कर्ज में डूबकर आत्महत्या क्यों कर ली ?
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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