ऋग्वेद-एक संत बहुधा कल्पयंति।
एकं सन्तं बहुधा कल्पयंति।
——–ऋग्वेद
हम एक ही सन्त(परमपिता प्रमात्मा) के बारे में सबसे अधिक कल्पना करते हैं;अर्थात कई नामों से पुकारते है,परंतु वह एक ही है।आप उसे ब्रह्मा विष्णु,महेश, राम,कृष्ण बुद्ध और महावीर आदि नामों से पुकारे पर वह हमारी कल्पना से परे,सर्वव्यापी; हर कण में विद्यमान है।वह इतना सूक्ष्म है कि कोशिका भी बहुत बड़ी लगे और इतना बड़ा कि पूरा ब्रह्मांड भी छोटा लगे।उसे पाना है तो मन की गहराईयों में झाँकिये को आपके सत्कर्म और सत्यज्ञान के पीछे छुपा बैठा वही तो है,कपट और अभिमान से उपर और धत्कर्म से कहीं नीचे।
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विवेचना:-राजेश’ललित’