“ऊहापोह की स्थिति में समाज”
“ऊहापोह की स्थिति में समाज”
मैं भारतीय हूँ .
मुझे भारतीय होने पर गर्व है.
हर नागरिक यही कहता है..और मैं भी ।
वो कौन लोग हैं ?
जिन्हें कथन पर शक है !
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जब सवाल पूछा जाये .
ऐसा क्यों ?
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तो जवाब मिलता है ।
वेदों में लिखा है !!
वैश्विक कुटुम्बकम्
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तो सिर्फ भारत पर गर्व क्यों है (सवाल)
पूरे विश्व पर यानि जीवन पर श्रद्धा क्यों नहीं.
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सभ्यता और संस्कृति-वान देश.
जाति और धर्म पर क्यों लड़ता नजर आता है.
फिर विश्व गुरु कैसे ?
क्या भारत में किसी तरह की समानता नजर आने वाला इतिहास मिलता है ।।
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नहीं
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क्या कोई
सामाजिक दर्शन.
अथवा
दर्शन-शास्त्र
जो किसी प्रायोगिक खोज को जन्म दे पाया .
कहीं हमारे वर्तमान आधार के पीछे .
कोई कट्टर, गलत, भ्रामक मंशा तो नहीं थी .
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आचरण, सदाचार, बढ़ते अपराध .
सच में प्रश्न खडे करता है ???
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किंकर्तव्यविमूढ़ ….।।
स्थिति में खड़ा समाज ।।