ऊपर बैठा नील गगन में भाग्य सभी का लिखता है
ऊपर बैठा नील गगन में भाग्य सभी का लिखता है
राह दिखाने वाला जग को ईश नहीं क्यों दिखता है! हे हरि!आकर ये बतला दो तुझे कहाँ पर पाऊँ मैं
मंदिर, मस्जिद या गिरिजाघर चरण पूजने जाऊँ मैं।
सब कहते हैं अंतर्मन में करते आप निवास प्रभु
सदा विराजित रहें ह्रदय में करता हूँ अरदास प्रभु।
a m prahari