ऊंचे हौसले किसानों के
ऊँचे हौसले किसानों के
अंदोलन की स्थिति लहरों में नाव की सी होती है,
कभी उन्नत कभी जोश में ठहराव जैसी होती है।
पग-पग पर सरकारी ज़्यादतियों का क़हर है,
राज-हठधर्मिता की बार-बार- ऊँची उठती लहर है।
अंदोलन भटकाने वाले दांव चले जा रहे हैं,
झूठे सपनों और अफ़वाहों से भ्रमा रहे हैं।
पर उधर हक़ पाने का जज़्बा और हौसला है,
किसान जंग को अंजाम तक पहुँचाने ही निकला है।
किसान पहाड़ से ऊँचे हौसलों के साथ खड़े हैं,
तभी तो अब तक सभी सरकारी दांव उल्टे पड़े हैं।
जब तक किनारे नहीं लगती नाव संघर्ष जारी है,
लहरों से पार पाने की अब हर हाल में तैयारी है।
कभी ऊपर उठता सा लगेगा कभी गिर जाना,
नाव को लहरों से हर हाल में है पार पाना।
अहिंसक आग्रह है किसानों का अपने हक़ के लिए,
बंद करने पड़ेंगे सरकार को तानाशाही सिलसिले।
नेक इरादों और हौसलों की सदा जीत होती है,
संगठन में लड़ने की उन्नत अपनी रीत होती है।
फसलों और नस्लों के संघर्ष में वर्षों बीते हैं,
इतिहास गवाह है ऊँचे हौसले सदा ही जीते हैं।