उड़ गए पंछी
उड़ गए पंछी ,
अकेला रह गया है
वृक्ष नीरव ,
शोर का संगीत ,
कानों में सिसकता सा रहा ।
ओस कण ऑंसू बने,
झरते रहे
पत्तों से रिमझिम,
डालियों का राग ,
प्राणों में विलखता सा रहा ।।
है अंधेरी रात अब ,
न चाँद है चाँदनी
सितारे स्तब्ध हैं ,
न गीत है न रागनी
भर गया है शोक ,
मन में मर गया है
मृदुल कलरव,
हवा का आँचल,
गगन में चिर लिपटता सा रहा ।
अब गुलाबों में नहीं हैं
रंग ,सब बदरंग हैं
कुमुदनी कुम्हला गयी है
मोद के स्वर भंग हैं
बाग की तो बात क्या है,
निर्जनों में
पड़ा है शव,
सुखों का साम्राज्य,
सूखे सा सिमटता सा रहा ।