उस साधु को फिर देखने मैं जो गई – मीनाक्षी मासूम
उस साधु को फिर देखने मैं जो गई
मैं भी उसी की साधना में खो गई
देखे उसी के बंद स्थिर जब दो नयन
संपूर्ण चंचलता हृदय की सो गई
जब से मुझे वो कृष्ण सा आया समझ
मैं बावली मीरा सी दर्शन को गई
वो राम बन मुझको नहीं अपना सका
उसके लिए ये त्यक्त सीता रो गई
मैंने चुने जब फल मधुर उसके लिए
मैं पास शबरी सी हो के मानो गई
पाने उसी की एक ठोकर हेतु मैं
शापित सी पत्थर की अहिल्या हो गई
मेरा वही मथने लगा जो मन कभी
मैं भी उसी क्षण मूर्ति रति हो तो गई
है वो बना बैठा अघोरी शिव अभी
अंगों से लिपटी भस्म सी मैं हो गई
पूरी नहीं होती उसी की साधना
मैं भी न जाने क्यों अधूरी हो गई