उस बेवफ़ा से क्या कहूं
दरकते दीवार को सिया नहीं जाता,
छलके जाम को पिया नहीं जाता!!
जो अपना था अब पराया हो गया,
उसपे ऐतबार किया नहीं जाता!!
आज भी उन तंग गलियों को दूर तक,
निहारती है खिड़की से दो पलकें!!
अपना वो साया अब खो गया कहीं,
बेवफ़ा के इंतजार में जिया नहीं जाता!!
बेमौसम टपकते हुए आंसुओं को,
पोछना छोड़ दिया है अब मैंने!!
दुनिया में अब इस दर्द-ए-दौर को,
किसी और को दिया नहीं जाता!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
बिलासपुर, छत्तीसगढ़