उस पार
मुझे
विचार विहीन
स्वप्न मुक्त
होना है
विचार जिनकी
जंजीर की
जकड़ बहुत
पुरानी और
मज़बूत है
स्वप्न जिनका
मोह बहुत
प्रगाढ़ और
अभेद्य है
मैं
मंत्रमुग्ध
दिग्भ्रमित
सदियों
से इनकी
जकड़ और
पकड़ में
हूं
मगर जब से
ये रंगे हाथों
पकड़े गए
हैं
मैं इनका
सारा खेल
समझ गई हूं
सारे भेद
जान गई हूं
तब से
इनकी
जकड़
ढीली
होती
जा रही है
और मैं
अधीर होती
जा रही हूं
विचार विहीन
स्वप्न मुक्त
हो उस पार
जाने के लिए
जहां सत्य
मुझसे मिलने
के लिए उतना
ही आतुर है
© मीनाक्षी मधुर