उसे पँख फैलाने दो
जो रचती संसार उस बेटी को आने दो ।
जीवन का जो सार उसे पँख फैलाने दो ।
बेटी ही माता बन सकती ।
बेटी ही बेटा दे सकती ।
बेटी बेटी की भी माता ,
बेटी सृष्टि को रच सकती ।
दुनिया की सृष्टा को गीत सृजन के गाने दो —
जब सृष्टि रचना संकल्प लिया ।
तब ईश्वर ने बिटिया रूप लिया ।
बिटिया की शुद्ध कोख में पलकर,
बेटा या बेटी ने जन्म लिया ।
बेटी के वंदन से उसका हिया अघाने दो —-
कष्ट प्रसव का बेटी सहती ।
वंश वृद्धि का साधन बनती ।
अब कंधे से कंधा मिला ,
जीवन यह पर सहज चलती।
हम खुद की ही गाते उसे अपना भाव बताने दो—
जो रचती संसार उस बेटी को आने दो।
जीवन का जो सार उसे पँख फैलाने दो ।
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प्रबोध मिश्र ‘ हितैषी ‘
वरिष्ठ साहित्यकार ,
बड़वानी (म. प्र . ) 451 551
मो. 79 74 921 930