उससे कोई नहीं गिला है मुझे
उससे कोई नहीं गिला है मुझे
बेरुखी उसकी इक सज़ा है मुझे
अब ख़िज़ाँ भी बहार सी लगती
जाने किसका नशा हुआ है मुझे
बोझ चाहे उठा न पाए दिल
हौसला पर न छोड़ना है मुझे
मैं तो बहता हुआ समंदर हूँ
क्यों समझता वो बुलबुला है मुझे
मैं दिखा दूँगी आसमां छूकर
अपनी हिम्मत का वास्ता है मुझे
उसकी दादागिरी का क्या कहना
बेवफ़ा खुद है, बोलता है मुझे
मैं हूँ तन्हा कहाँ ज़माने में
तेरी यादों का जो सिला है मुझे
‘अर्चना’ है सुकून बस इतना
जो मिला कम नहीं मिला है मुझे
डॉ अर्चना गुप्ता
20.07.2024