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10 Dec 2023 · 4 min read

उल्लाला छंद विधान (चन्द्रमणि छन्द) सउदाहरण

उल्लाला छंद विधान (चन्द्रमणि छन्द) सउदाहरण

उल्लाला छंद (चन्द्रमणि छन्द) – (यह.सम मात्रिक छन्द है)
इस छंद के हर चरण में 13-13 मात्राओं से कुल 26 मात्राएं या 15-13 के हिसाब से 28 मात्राएं होती हैं।

इस तरह उल्लाला के दो भेद होते है।
पर 13-13 मात्राओं वाला ही विशेष प्रचलन में है। और हम इसे ही उदाहरण में लेकर चल रहे है

दोहे के विषम चरण की तरह इस छन्द में 11वीं मात्रा लघु ही होती है। . चरणान्त मॆं तुकांत अनिवार्य हॊती है ।

पर 15 मात्राओं वाले उल्लाला छन्द में 13 वीं मात्रा लघु होती है।
या यूँ कह ले कि दोही का विषम चरण

13 मात्राओं वाले उल्लाला के विषम /सम चरण, बिल्कुल दोहे के विषम चरण के समान होते है

चरणांत दो लघु वर्ण अथवा एक गुरु वर्ण से हो सकता है।
चूकिं ग्यारहवी मात्रा लघु का‌ नियम है तो चरणांत तीन लघु का भी कहकर कर सकते है

इस छन्द में बहर का कोई बन्धन नहीं होता है , शिल्प बिल्कुल दोहे के विषम चरण जैसा होता है

सीधी और सरल बात – उल्लाला छंद के चारो चरण , दोहे के विषम चरणों जैसे मापनी के एवं तुकांत सम चरणों में मिलाएं

इस छन्द को चन्द्रमणि छन्द भी कहा जाता है।

उल्लाला छंद

दीन न लेखन जानिए , करता है ललकार जब |
शब्द बाण चलते ‌रहे , करके पैनी धार तब. ||

कलम धनुष ही मानिए, तीर बने है सार सब |
अनुसंधानी कवि लगे, लक्ष्य सृजन स्वीकार तब ||

(उपरोक्त 13 -13 के उल्लाला के सम चरणों मेंं पदांत 111 से है |जैसा दोहे के विषम चरण की यति में होता है )

अंतस के जब भाव का , कलम बनाती चित्र है |
शब्द सभी हैं बोलते , जैसे बिखरा इत्र‌ है ||

यह “सुभाष’ नादान बन , वहाँ तोलता मौन है |
महिमा कलम बखानती , यहाँ बोलता कौन है ||

उपरोक्त उल्लाला के सम चरणों में चित्र – मित्र व मौन -कौन की तुकांत मिलाई जाएगी | कुछ और छंद देखे

ज्ञानी प्रवचन में कहे , सब माया जंजाल है |
पर कुटिया के नाम पर , बँगला बड़ा विशाल है ||

वह हमको समझा गए, दुनिया बड़ी ववाल है |
मिलने जब मैं घर गया, देखा उल्टा हाल है ||

सबको आकर जोडिए, कितनी अच्छी बात है |
कहने बाले तोड़ने , लगे हुए दिन- रात है ||

खुदा नहीं रुपया यहाँ , कहने में है बात दम |
पर रब से भी कम नहीं , देख रहे दिन रात हम ||

==========================
उल्लाला छंद में मुक्तक –

जीवन के दिन चार हैं , रटा खूब था ज्ञान को |
दो झगड़े में कट गए , दो सोंपे अभिमान को |
जीवन खोया खेल में , किया स्वयं बेकार है –
अंत समय घिघिया रहे ,याद करे भगवान को |

जीवन के दिन चार कुल, जिसमें गुणा न भाग है |
फिर भी जिसमें आदमी , पाता रहता दाग है |
मस्ती में जीवन कटा , लिया न प्रभु का‌ नाम तब~
अब मरघट की राह क्यों , राम नाम का राग है |

जीवन के दिन चार है , करता संत सचेत है |
सोने जैसे हाथ में , थामे रहता रेत है |
जो कहते थे हम सदा , हरदम तेरे साथिया –
संकट आया जानकर, पास न कोई. हेत है |
या ( भाग गए सब खेत है )
———————————–============
उल्लाला छंद में गीतिका

लिखता हिन्दी छंद से ,‌अब उल्लाला गीतिका |
हिंदी‌ को पहना रहा, अब मैं माला प्रीति‌का‌ ||‌

खतना हिंदी कुछ करें , वर्ण शंकरी ज्ञान से ,
हिंदी वाले तोड़ते , है अब ताला‌ नीति का |

टेक अंतरा भूलकर, भूले मुखड़ा शब्द ,
पूरक को भी छोड़ते , कुचलें जाला रीति का |

नुक्ता मकता थोपते , हिंदी ‌ छंद विधान पर‌,
खतना के‌ औजार से , रुतवा डाला मीत का |

चेतो‌ हिंदी ज्ञानियो , समझो मेरी बात. कुछ ,
मौसी हिंदी शब्द तज , खाला क्यों है पूत का |

सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~~
उल्लाला गीतिका

मूरख. हो यदि सामने , बचे रहो तकरार से |
बेमतलव. की रार में, कीचड़ के उस पार से ||

यह कैसा बदलाव है , चुप बैठे अब हंस है ,
नागनाथ से दूर सब , बचे रहें फुसकार से |

न्याय कटघरे में खड़ा , मिलता नहीं गवाह है ,
आरोपो की सुंदरी , बुला रही रुखसार से |

बदल गए अब देखिए , हिंदी के विद्वान है ,
खतना करते छंद की , उर्दू की तलवार से |

बदल गए हालात है , मत सुभाष तू सोचना |
चलना सच्ची राह पर , अपने हंस विचार से ||

कड़वा लिखता तू सदा , मिर्ची लगती गात में |
मीठा लिखना सीख ले , बात कहूँ सच यार में ||
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उल्लाला छंद में गीत

शक्कर को ही देखिए , घुल. जाता मिष्ठान में | (मुखड़ा)
नहीं गुणों को‌ भूलता , आ जाता पहचान में || टेक

सृजन धर्मिता नष्ट हो , समझो वहाँ अनिष्ट. है | अंतरा
कथ्य भटकता सा मिले , कर्म वहाँ तब.भ्रष्ट है ||
लगता अच्छा है नहीं, खल को भी उपदेश है |
बस मतलब की बात पर , उसका सब परिवेश है ||

पर सज्जन की बात कुछ, रहता सदा विधान में | पूरक
नहीं गुणों को‌ भूलता , आ जाता पहचान में || टेक

गुनियाँ ग्राहक यदि मिले , वहाँ बेंचिए माल को |
देने मूरख को चले, निज की पीटा खाल को ||
नही दया हो जिस ह्रदय , उपज नहीं भू भाग जब |
वचन जहाँ हो कटु भरे , खोजों नहीं पराग तब ||

ढक देता ‌‌बादल सदा , सहन. शीलता भान. में |
नहीं गुणों को‌ भूलता , आ जाता पहचान में ||

नागनाथ से दोस्ती , कीजे सोच विचार कर |
मिले दंश उसका सदा , जहर वमन उपहार. दर ||
बेवश दिखती मित्रता , मानव भी लाचार है |
कोयल के घर पर दिखा , कागा का अधिकार है ||

शेर नहीं गीदड़ बने , नहीं किसी अहसान में |
नहीं गुणो को‌ भूलता , आ जाता पहचान में ||
~~~~~~~~~~

गीतिका , आधार – उल्लाला छंद ~
(चारों चरण दोहे के
विषम चरण का निर्वाह करते है)
ई स्वर ,

जब मुलाकात भी सजी , उससे उम्र की ढली में |
यादे ‌ नासूर सी जगी , नुक्कड़ वाली गली में |

आंसू सूखे हुए भी , वहाँ पिघलने थे लगे,
गंगा – सी बहने लगी , नुक्कड़ वाली गली में |

मुझे एकटक देखती , होंठ नहीं वह. खोलती ,
लगती जैसे वह ठगी , नुक्कड़ वाली गली में |

नहीं अंजाम था पता , बदली गलियों की हवा,
खता आवाज ही मिली , नुक्कड़ वाली गली में |

चल सुभाष इस गली से ,दूर इल्जाम है नहीं ,
सभी खिड़कियाँ दिलजली , नुक्कड वाली गली में |

सुभाष सिंघई जतारा

==============
-©सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य ,दर्शन शास्त्र
===========
आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से छंद को समझानें का प्रयास किया है , विधान , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें
सादर

Language: Hindi
333 Views
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