” उलझन “
एक वक्त था जब वो कहते थे ,
मेरी सारी समस्याओं का हल तुझसे ही है ।
अब हम ही उनकी समस्या है ।
जब वक्त ने करवट ली ,
हाथ से कुछ रिश्ते छुट गए ,
कुछ सुलझे तो कुछ उलझ गए ।
निकालने को सौ दोष निकालते हैं ,
हमारी कई गलतियां याद दिलाते हैं ।
कहां कोई गलतियां सुधारने का उपाय बताते हैं ,
जनाब ! खुद के किरदार में झांकना क्यों भूल जाते हैं ।
सभी अपनी अपनी उलझन समझाते हैं ,
कहां कोई किसी की उलझन समझ पाते हैं ।
कहते हैं सबसे अलग हो तुम ,
फिर भी तुलना सबसे ही किए जाते हैं ।
कुछ नहीं चाहिए तुमसे ,
ये कह कर हमदर्द बन जाते हैं ।
आया जो वक्त खाली हाथ थामने का ,
सबसे पहले वहीं हाथ छोड़ जाते हैं ।
बार बार इन उलझनों से ,
हृदय सहम सा जाता है ।
होगा नुकसान हमारा ही जानते है ,
फिर भी ये हृदय उन्हीं से उलझ जाता है ।
– ज्योति