उलझन (कहानी )
“उलझन”
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शाम का समय ,आकाश में बादल छाये हुए थे, हवा तेज चल रही थी और मौसम भी जाड़े का ।लोग रजाई में दुबके पड़े गर्मचाय
का आनन्द ले रहे थे । सरिता चाय के साथ ही
साथ बातें भी कर रही थी तभी बगलवालेअजय
जी की बातें होने लगीं।
अजय जी अपने निजी जीवन से न जाने क्यों त्रस्त थे ।अच्छे खासे पढ़ने वाले बच्चे
अच्छी सी पत्नी ,पर अजय काल्पनिक लोक में
विचरण कर रहे थे ।उन्हे उन सबसे सन्तुष्टि नहीं
थी, वे न जाने क्या चाहते थे जिसकी खोज़ वे
पूजा पाठ में कर रहे थे । जिसकी पूर्ति पत्नी व
बच्चे कर सकते थे उसको दूसरी जगह से कैसे
प्राप्त किया जा सकता था ।
इतने में अजय जी की पत्नी आ गयीं।
“आइए ….आइए …चाय पी लीजिए।”सरिता
श्रीमती अजय से बोली ।
“नही..नहीं .. चाय पीकर आ रही हूँ । मन ही नहीं लग रहा था सो चली आई । “श्रीमती अजय बोली ।
कुछ देर बाद वे फिर बड़े ही मायूसी से बोलीं- “इनको न जाने क्या हो गया है ,हमेशा चुपचाप रहते हैं ,पूजापाठ में ही लगे रहते हैं । कोई गलत लत भी नहीं है पर हमेशा चुपचाप रहते है ।”
कहते कहते श्रीमती अजय की आँखों में आँसू भर आये ।
अजय जी के बच्चे तो अपने दोस्तों में
अपना एकाकीपन दूर कर लिया करते थे फिर
भी पिता तो पिता ही होते है । उनके मुख से
स्नेहासिक्त दो बोल भी अमृततुल्य होते है ।
अजय जी भी स्वयं नहीं समझ पा रहे थे कि गलती कहाँ हो रही है।
एक दिन लगे कहने-कोई मुझे प्यार नहीं करता ,सभी के लिए मै सबकुछ करता हूँ पर
मुझे कोई नहीं चाहता ।
आप अपना समय कैसे बिताते है?
मैं काम करके घर आता हूँ और फिर पूजापाठ में स्वयं को लिप्त कर देता हूँ।
शर्मा जी गम्भीर स्वर में बोले
“अजय जी परिवार आपके आने का इन्तजार
कर रहा होता है और आप उनसे बात करने व
उनके साथ समय बिताने की जगह मन्दिरों में
शान्ति तलाशते हैं ।यह मुमकिन ही नही है।असली मन्दिर घर है । परिवार की खुशी ही ईश
भक्ति और उसी से शान्ति मिलती है।
बहुत सारे घरों में संवादहीनता के कारणआपस की दूरी बढ़ती ही जाती है । दोनों ही यह समझने लगते है कि कोई उनसे प्यार नहीं करता। पुरुष बाहर प्यार तलाशने लगता है
या भक्ति में स्वयं को डुबो देता है । महिला भी
या तो भक्ति में स्वयं को डुबो देती है ,अन्यथा
सारा का सारा क्रोध बच्चों पर और वह भी नहीं
हो पाता तो कुंठित होती चली जाती है ।हमेंएक
दूसरे के लिए वक्त अवश्य निकालना चाहिए।
अजय जी कहाँ खो गये ?शर्मा जी ने पूछा।
” कहीं न कहीं तो गलती तो हुई ।अब उसे सुधारने की कोशिश करूँगा ।”अजय जी बोले।
अजय जी को बात समझ में आ गयी । वे परिवार को समय देने लगे औरपरिवार उनको प्यार करने लगा । सारी की सारीउलझने
ही खत्म हो गयीं ।वे अब भी मन्दिर जाते है पर
अपनी पत्नी के साथ । उन्हे जिन्दगी में आनन्द
आने लगा है और परिवार को भी ।
डॉ.सरला सिंह।