उर्दू की मिठास
कितने मुख्तलिफ़ चेहरों से ग़ुफ़्तगू होती है कुछ दिले ख़ास होते हैं तो कुछ निहायत बद दिमाग।उर्दू ज़ुबान में ‘बा’और ‘बे’ का यकीनन् बेहतरीन प्रयोग है।जैसे बाअदब मतलब अच्छे से और बेअदब मतलब बुरे से और इनका प्रयोग ज़ोरों से होता है।अब उर्दू में किस्सा ब्यां तभी किया जा सकता है जब इस जुबान से अच्छे से वाक़िफ़ हो।उसी तरह जैसे मंत्रो का उच्चारण संस्कृत भाषा के अभाव में नहीं किया जा सकता या शायद सही से।अब उर्दू में ग और ग़ अलग अलग है क और क़ भी अलग हैं ज़ और स तो कई रूपों में है पर प्रयोग वहीं कर सकता है जिसे उर्दू आती हो।बेचारे न जानने वाले कितने ग़लत अल्फ़ाज़ रोज़ प्रयोग करते हैं जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है।मुझे उर्दू अल्फ़ाज़ को बोलने में विशेष आनंद की अनुभूति होती है चूंकि यह भाषा मेरे दिल के करीब रही है और हिन्दी से तो ताउम्र वास्ता रहेगा और लेखन पठन अध्ययन अध्यापन जाने कितनी भूमिकाओं में जुड़ा हूं और अब तो हिन्दी उर्दू दोनों भाषाओं में लेखन भी यकीनन् मन आनंद से भर जाता है•••
मनोज शर्मा