उर्दू अदब के चर्चित रचनाकार फ़ज़ले हसनैन मुल्क-ए-अदम को गए
कोरोना काल में हिन्दी ही नहीं बल्कि उर्दू अदब के कई हीरे काल के गाल में समा गए हैं। अप्रैल माह में ही हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार नरेंद्र कोहली, तो उर्दू अदब से अफ़सानानिगार अन्जुम उस्मानी, मशहूर शाइर व दोहाकार ज़हीर क़ुरैशी और सबके प्रिय व्यंग्यकार, नाटककार तथा पत्रकार श्री फ़ज़ले हसनैन साहब का भी आज, दिनाँक 24 अप्रैल, 2021 ईस्वी. दोपहर को लगभग पौने एक बजे स्वर्गवास हो गया। वे पिचहत्तर बरस के थे। परिजनों ने बताया कि वे लम्बे वक़्त से बीमार चले रहे थे। उम्मीद है, आज शाम ही सात-साढ़े सात बजे तक ‘लालगोपालगंज’ स्थित कब्रस्तिान में उनको सुपुर्द-ए-ख़ाक किया जाएगा।
जनाब फ़ज़ले हसनैन साहब का जन्म 07 दिसंबर 1946 ईस्वी. को ‘रावां’ नामक गांव में हुआ था, जो कि प्रयागराज के लालगोपालगंज में स्थित है। बारहवीं तक की शिक्षा लालगोपालगंज से ही पास करने के उपरान्त सन 1973 ईस्वी. में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही उन्होंने ‘उर्दू’ विषय में अच्छे नंबरों से स्नातकोत्तर किया था।
कुछ वक़्त इधर-उधर गुज़रने के पश्चात प्रयागराज से प्रकाशित नार्दन इंडिया पत्रिका से ही उन्होंने अपने पत्रकारिता पूर्ण जीवन की सुहानी शुरूआत की। फिर “अमृत प्रभात” व “स्वतंत्र भारत” नामक पत्रिकाओं में अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने व्यक्तिगत लेखन की शुरूआत हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेज़ी भाषाओं में 1974 ईस्वी. से प्रारम्भ किया था। कहते हैं न पूत के पाँव पालने में ही दीख जाते हैं। हसनैन साहब को पढ़ने-लिखने का शौक़ यूँ तो बचपन से ही था। अतः इनकी कहानियाँ, नाटक व व्यंग्य देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं लगातार छपने लगे। इस तरह उर्दू अख़बारों व रिसाले में प्रकाशित होते हुए साहित्य का सफ़र तय करते रहे।
दुनिया की निगाहों में इनकी धमाकेदार गूँज तब सुनाई दी, जब 1982 में साहब का पहला व्यंग्य संग्रह ‘रुसवा सरे बाज़ार’ प्रकाशित हुआ था। पुराने-नए पाठक जो अब तक फ़ज़ले हसनैन साहब के नाम से अन्जान थे, हैरान रह गए कि इतना जादुई और करिश्माई सृजन करने वाला ये साहब अब तक कहाँ छिपे बैठे थे? इसी पुस्तक पर उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी ने उन्हें पुरस्कृत करके स्वयं को गौरवान्वित महसूस किया।
वर्ष 2001 में व्यंग्य रचना संग्रह ‘दू-ब-दू’ प्रकाशित हुआ। इसके अतिरिक्त बीच-बीच में इनके तीन मशहूर नाटकों की किताबें “रोशनी और धूप”; “रेत के महल” व “रात ढलती रही” भी छपे और खूब चर्चित रहे। इसके अलावा इनकी जो किताब सबसे ज़ियादा चर्चा में रही, वो थी—”हुआ जिनसे शहर का नाम रौशन” जो कि वर्ष 2004 ईस्वी. में छपी थी, यह पुस्तक प्रयागराज के तमाम बुद्धिजीवियों-साहित्यकारों से हम सबको रू-ब-रू करवाती एक लाजवाब किताब है, जिसके अब तक तीन संस्करण प्रकाशित हुए हैं।
अपने साहित्य सृजन के अलावा फ़ज़ले हसनैन साहब ने मशहूर उपन्यासकार चार्ल्स डिकेंस के उपन्यास “डेविड कापर फील्ड” का उर्दू में निहायती खूबसूरत अनुवाद किया है। जो वास्तविक उपन्यास से भी अधिक प्रभावी बन पड़ा है। इसके अलावा उन्नीसवीं सदी के मशहूर शा’इर मिर्ज़ा असदुल्लाह खां ‘ग़ालिब’ पर रची गई इनकी किताब “ग़ालिब एक नज़र में” को इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने अपने पाठ्यक्रम में शामिल करके इनकी विद्वता को नमन किया था। दुर्भाग्य आज उर्दू अदब के यह चर्चित रचनाकार फ़ज़ले हसनैन मुल्क-ए-अदम (परलोक) को चले गए। खुदा उनकी पाक रूह को हक़ मग़फ़िरत (मोक्ष) फ़रमाए, जन्नत (स्वर्ग) में फ़ज़ले हसनैन साहब की रूह के दर्जात बलंद करे, बोलो आमीन।