उरवासी
उरवासी (दुर्मिल सवैया )
दिल में रहते न कभी हटते तुम बात सदा हँसते करते।
तुम प्राण बने बहते रग में तन नूतन नित्य सदा करते।
मन में खुश हो रहते प्रिय तू शुभ साधन धाम बने दिखते।
नजरें मिलती रहती नित हैँ प्रिय प्रेम कथा रहते लिखते।
सपना बनते अपना लगते जब से तुम हो प्रिय पास सखे।
तुम गुप्त कभी तुम जाग कभी तुम भाग्य कभी नित आस सखे।
तुम बंधन प्यार उदार सखे तुम चन्दन इत्र शुमार सखे।
तुम प्रेम समंदर मध्य सखे प्रिय ज्ञान अथाह अपार सखे।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।