*उम्र के पड़ाव पर रिश्तों व समाज की जरूरत*
जैसा कि हम सभी जानते हैं मानव जीवन में समाज, धर्म, जाती, रिश्ते, परिवार आदि की समय समय पर एक दूसरे की जरूरत रहती हैं।
परन्तु आज के युग में मानव जीवन की जटिलता कहो या अपने स्वार्थ के लिए समाज, धर्म, रिश्तों को निभाने में टाल मटोल करता है, जिस से समाजों के बिखराव व रिश्तों के टूटने की नौबत आने लगी है। परिवार संस्कार हीन व बच्चों के आत्म अनुशासन की कमी रही है।
लेकिन एक समय आने पर मानव को भी समाज, धर्म, जाति, परिवार, रिश्तों आदि की जरूरत होती है और तब तक बहुत देर हो चुकी होती हैं| तब समय जा चुका होता है, फिर मानव अपने कर्म पर पश्चाताप करता है, और सब कुछ समय के भरोसे छोड़ देता है।
मैं एक कहानी दिखाता हुँ| दो मित्र होते हैं, रामु व राजू दोनों ही बचपन से साथ खेल खुद व पड़कर बड़े हो जाते हैं, तथा उनकी शादी होजाती है। शादी होती है, तो बच्चे हो जाते हैं।
राजू की नौकरी अच्छी कम्पनी मे होती हैं, अच्छा पैसा कमाता है| परन्तु जब कभी भी रामु या अन्य रिश्तेदार लोग राजू को अपने समाज, परिवार में बुलाते तो, राजू नहीं जाता और पैसों की बात करता की जीवन मे पैसा जरूरी है, यह व्यर्थ खर्च है| हम को इन से बचना चाहिए समय आने पर पैसों से ही काम होता है। राजु ने बहुत पैसा व प्रोपर्टी बनाई बच्चों को भी डॉक्टर की पडाई करके अच्छी नौकरी लगाई व जिवन का एक पड़ाव सुखी से बिताया
रामु भी अपने परिवार बच्चो के साथ अच्छी तरह, एक कम्पनी मे अच्छे पोस्ट पर कार्यरत हंे वह समय समय पर अपने समाज, धर्म, रिश्तों व परिवार के कार्यो में भी जुड़ता रहता था। अपने बच्चों की शादी करवा कर एक दिन उसने अपने मित्र राजु से मिलने का मन बना के उसके घर गया।
दोनों दोस्त काफी समय बाद मिले तो बहुत खुश हुए एक दूसरे के बारे में व परिवार की बाते की, तो बातों-बातों में रामु ने कहा यार तेरे बच्चे मेरे बच्चों से बड़े है| अच्छा कमाते है, तेरे पास बहुत पैसा, बड़े बड़े मकान और गाड़ी भी है। फिर अपने बच्चों की शादी में देरी क्यों हो रही हैं।
राजु को यह बात सुनते ही आँखों में पानी आगया अपने बच्चपन की दोस्ती के सामने दिल को रोक नहीं पाया फिर अपनी आप बीती सुनाने लगा।
यार रामु अब तुमसे क्या कहु यही गम मुझे अन्दर से खोखला कर रहा है, मे रोज थोड़ा-थोड़ा मरता जा रहा हूँ।
हा मेरे पास गाड़ी पैसा सबकुछ है, किन्तु तेरी तरह सुकून नहीं है। मुझे मेरी गलती का अहसास अब होता है, मैंने समय रहते समाज, धर्म, परिवार, रिश्तों के लिए समय निकालता वह अपने बच्चों को ईन सभी से जोड़ता कुछ पल ही जिवन के सभी के साथ रहता तो बात कुछ और होती|
आज मेरे बेटे को शादी के लिए कहता हूँ तो कहता है, में सब देख लुगा अभी समय नही है, और आप भी क्या फीजुल् खर्च मे हो, अभी छूटीया नहीं है मेरी
बता यार दोस्त अब ये पैसा, मकान, गाड़ी सब किस काम के ये पैसा किस के लिये है, कभी-कभी तो मुझे लगता हैं यार वो मेरे मरने पर भी मुझे लकड़ी देंगे और जोर से रोने लगा अपने आप पर बहुत शर्मिंदा होने लगा।
तब राजु ने अपने दोस्त को गले लगा कर चुप किया और कहा कि जो गलती तूने की है, वो अपने बच्चों को नहीं करने दे उन्हें अपने धर्म, समाज, जाती, रिश्तों की जरूरत का ज्ञान करवा बता की दोनों को एक दूसरे की जरूरत है। आज हम समाज, धर्म, परिवार, रिश्तों को समय देंगे तो समय पर इन्ही के साथ हमारा लगाव रहेगा।
अनिल चौबिसा
चित्तौड़गढ़ (राज.)
9829246588