उम्र का सौदा
रचना नंबर (8)
उम्र का सौदा
सुकून भरे कुछ पल चुरा लूँ
अपनी उम्र का सौदा कर लूँ
क्यूँ मानूँ ख़ुद को उम्रदराज़
उम्र को दराज़ में ही रख
आई
सूरज की किरणों से
लाली उषा की उधार ले
आई
बगिया की कलियों से
खुशबू मेरी मुठ्ठियों में भर
लाई
तितलियों के पंखों से
इंद्रधनुषी रंग पल्लू में भर
लाई
नदियों की कलकल से
सप्तसुरों को शब्दों में भर
लाई
बारिशी टप-टप बूँदों से
उमंगें सारी ख़्वाबों में भर
लाई
खिलखिलाते बच्चों से
बचपन का झट सौदा कर
आई
अनचाही यादें भुलाने को
मायूसियाँ सन्दूक में रख
आई
गमों की गठरी अटाले में बेंच
राह में बिखरी खुशियाँ बटोर
लाई
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित