” उम्मीदें बल खाती हैं ” ।।
गीत
देश भले ही तरक्की कर ले ,
जनता धक्के खाती है ।
उनके हित की बने योजना ,
भला कहाँ कर पाती है ।।
खूब बदलते सेवक देखे ,
खुशियां थोड़े दिन की है ।
कुर्सी पर बैठे जैसे ही ,
नीयत भी बदली सी है ।
आशाएं सब दम तोड़े है ,
रेहन रख दी जाती हैं ।।
देश भले ही तरक्की कर ले ,
जनता धक्के खाती है ।।
राशन मंहगा , शिक्षा मंहगी ,
मंहगी बड़ी चिकित्सा है ।
नीली छतरी आश्रय सबका ,
घर पाना भी तपस्या है ।
जीवन से मरने तक कर है ,
श्वांसे ही बच पाती हैं ।।
देश भले ही तरक्की कर ले ,
जनता धक्के खाती है ।।
है किसान भी मारा मारा ,
श्रमिक अधमरा दिखता है ।
धनिक वर्ग चढ़ता सीढ़ी है ,
मध्यम वर्ग तो सिकता है ।
नेताओं ने पीढ़ियाँ तारी ,
मुस्कानें लहराती हैं ।।
देश भले ही तरक्की कर ले ,
जनता धक्के खाती है ।।
सबसे ज्यादा कर का बोझा ,
राहत मिलती थोड़ी है ।
बेकारी है खड़ी सामने ,
किस्मत बड़ी निगोड़ी है ।
आरक्षण का संकट भारी ,
चूलें हिल ही जाती हैं ।।
देश भले ही तरक्की कर ले ,
जनता धक्के खाती है ।।
सीमाओं पर सेना का दम ,
यहाँ ठिठोली , ताने हैं ।
सत्ता कुछ अच्छा करती तो ,
हुए विपक्ष मनमाने हैं ।
देशभक्ति के भाव हैं सोये ,
भारती अश्रु बहाती है ।।
देश भले ही तरक्की कर ले ,
जनता धक्के खाती है ।।
नये नये नित नारे मिलते ,
ऊर्जा पूरित भाषण हैं ।
कृत्रिम साँसे जीवन को है ,
पाते हम उच्छवासे हैं ।
क्या होगा जीवन परिपूरित ,
उम्मीदें बल खाती हैं ।।
देश भले ही तरक्की कर ले ,
जनता धक्के खाती है ।।
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )