उबारो हे शंकर !
जगत को मिटाने चला है बवण्डर।
उबारो हे शम्भू! उबारो हे शंकर!!
पड़ा सृष्टि-अस्तित्व पर घोर संकट,
किया कण्ठ-धारण हलाहल तुम्हीं ने।
चलीं स्वर्ग से वेग लेकर थीं गंगा,
जटा में किया उनको शीतल तुम्हीं ने।।
बचाया धरा को तुम्हीं ने समय पर।
उबारो हे शम्भू! उबारो हे शंकर!!
पुकारा हृदय से सुरासुर ने जब भी,
बिना भेद सबकी सुने सर्वदा तुम।
कभी जब किसी भक्त ने तुमसे मांगा,
दिए हो सकल विश्व की सम्पदा तुम।।
चराचर जगत को अभय-दान दे कर।
उबारो हे शम्भू! उबारो हे शंकर!!
निराशा की विष-बेल पसरी है पग-पग,
मरण-भय से मानव सशंकित पड़ा है।
बचा लो महारोग से विश्व को अब,
महादेव से कौन जग में बड़ा है।।
‘असीम’ आ गिरा है तुम्हारे चरण पर।
उबारो हे शम्भू! उबारो हे शंकर!!
✍️ शैलेन्द्र ‘असीम’