उफ ! ये गर्मी, हाय ! गर्मी / (गर्मी का नवगीत)
उफ ! ये गर्मी,
हाय ! गर्मी,
झर चुके सब
पात, सुख के ।
चिटचिटाती
शाख, मन की,
चिपचिपाती
धाक, तन की ।
तड़फड़ाते
जीव-जन्तु,
कसमसाते
प्रेम-तन्तु ।
उफ ! ये गर्मी,
हाय ! गर्मी,
जहर सूखे
नाग-मुख के ।
धकधकाती
साँस, शव की,
चुभ रही है
फाँस, भव की ।
चरमराते
कर्म सारे ।
तपतपाते
मर्म सारे ।
उफ ! ये गर्मी,
हाय ! गर्मी,
मंद होते
भाव, दुख के ।
तमतमाती
आँख-पुतली,
किलबिलाती
पाँख,तितली ।
उबलती है
नदी सूखी,
मचलती है
सदी भूखी ।
उफ ! ये गर्मी,
हाय ! गर्मी,
ताव उतरे
गरम-रुख के ।
उफ ! ये गर्मी,
हाय ! गर्मी,
झर चुके सब
पात, सुख के ।
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— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।