उफ़्फ़ ये सर्दी!
उफ़्फ़ ये सर्दी!
दिल से पड़ी है इस बार
बेदर्दी सर्दी के
बर्फ के गोदाम लबालब हैं,
ग्लेशियरस की बस्तियाँ आबाद हैं,
रुइयो से सफ़ेद हुए जाते हैं पहाड़,
नदियों पर सफ़ेद चादर सी बिछी है,
शॉलों के गालों पर लाल टमाटर हैं,
ऊनी स्वेटर्स जागे से हैं,ऊंघते बिलकुल भी नहीं,
मोजों की फ़ौज की तो मौज़ हो चली है,
रजाइयां रज के राज़ कर रही हैं,
हीटर्स हीरो से हिट हो गए हैं,
चाय के प्यालों की गूँज दूर तक है,
कॉफी से सब मिला रहे काफिया हैं,
कहवा भी अपने रंग में है,
रबड़ी से सबका राबता झलकता है,
हलवे के जलवे और मशहूर हो गए हैं,
बॉन फायर की महफ़िल सजी है गली गली,
गुलुबंद के गुलशन गुलज़ार हुए जाते हैं,
कड़ी सर्दी में हम-तुम बाहों का हार हुए जाते हैं
सूरज की कमी सी है,
आँखों में नमी सी है,
तेरे ख्वाब तो कबके बर्फीले हुए
लेकिन तुझसे मिलने की तमन्नावाली सिगड़ी
आज भी दिल में सुलग रही है
और ये उस सिगडी की तपिश है जो अब तलक
मुझमें ज़िन्दगी को ज़िंदा रखे हुए है!
सोनल निर्मल नमिता