उपहार (फ़ादर्स डे पर विशेष)
उपहार (लघुकथा)
सुबह उठते ही प्रशांत तैयारी में जुट गया।
नीता -“कहां की तैयारी है?”
“आवश्यक कार्य से जाना है”
“मैं भी साथ चलूंगी।”
सोनू ने कहा-“पापा हम कहां जा रहे है”?
बिना कुछ कहे प्रशांत गाड़ी पर जा बैठा।गाड़ी सरपट अपनी मार्ग की ओर बढ़ रही थी।दोपहर तक वे गोपालगंज गांव पहुंचने वाले थे।आज अचानक यहां क्यों आ गए? नीता ने प्रश्न दागा।
” इतने साल हो गए हैं, तुम्हारा अबोला चल रहा है?
अब क्या आफत आन पड़ी है,
क्या कोई अनहोनी तो नहीं है”?
“बस कर,” प्रशांत ने पत्नी को चुप कर कहा।
“बचपन से मेरी हर जरूरत को पूरा किया है ,उन्होंने अनेक कठिनाइयों में पाला है मुझे।
आज मेरी बारी आई तो मैं भी पीछे नहीं हटूंगा।”
इतने में घर के बाहर गाड़ी पहुँची।
दरवाजे की कुंडी खटखटाई ।
कुछ देर बाद बाबूजी ने दरवाजा खोला ,देखते ही आश्चर्यचकित हो गए!
प्रशांत -“बाबूजी जन्मदिन पर सादर प्रणाम, बधाई हो। आपका आशीर्वाद सदा बना रहे।आपके लिए छोटा -सा उपहार एक आराम कुर्सी लाया हूँ।” नन्हा कार्तिक बोला-“हैप्पी फ़ादर्स डे दादाजी।”वर्षों बाद बाबूजी के लिए एक सुखद दिन आया था। उन्होंने सभी को प्रसन्नतापूर्व आशीर्वाद दिया।
स्वरचित लघुकथा
डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय
शिक्षाविद ,लेखक
269 ,जवाहर मार्ग ,इंदौर
9424885189
drpranavds@gmail. com