उपन्यासकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ को बड़े साहित्यिक पुरस्कार नहीं मिले !
हिंदी उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु के साहित्यिक अवदान भूलने लायक नहीं ! तारीख 4 मार्च को हिंदी और बिहार के महान कथाशिल्पी, उपन्यासकार और रिपोर्ताज़-लेखक फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की धूमधाम से जयन्ती मनाई जाती है।
विदित हो, रेणु जी का जन्म वर्त्तमान अररिया जिला के सिमराहा-औराही-हिंगना में 4 मार्च 1921 को हुआ था । गरीबी, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी और नेपाल में राणाशाही के विरुद्ध छापामार लड़ाई ने उन्हें आँचलिक और क्रान्ति- कथाकार बना दिए।
आरम्भ में उनके विश्वप्रसिद्ध उपन्यास ‘मैला आँचल’ को पूर्णिया के बांग्ला उपन्यासकार सतीनाथ भादुड़ी के उपन्यास ‘ढोढाई चरित्र मानस’ की हिंदी में नक़ल मानी गयी थी, किन्तु धर्मवीर भारती ने ऐसी अफवाह को सिरे से खारिज कर दिया। उपन्यास ‘मैला आँचल’ को किसी भी तरह के पुरस्कार प्राप्त नहीं होना आश्चर्य स्थिति लिए है, बावजूद इनकी प्रसिद्धि यह बताती है कि पाठकवर्ग ही उनके लिए पुरस्कार है।
मुफलिसी के दिनों में रेणु जी अखबारों में रिपोर्ताज़ लिखकर व फ्रीलांसर बन जीविकोपार्जन किया करते थे, हालांकि गाँव में धानुक-अत्यन्त पिछड़ा वर्ग में इनकी जमींदार-सी स्थिति थी । वे जयप्रकाश नारायण के सच्चे अनुयायी भी थे, इसलिए पटना में जे.पी. को बिहार पुलिस की लाठी से बर्बरता से पिटाई के बाद ‘तीसरी कसम’ के लेखक ने भारत सरकार से प्राप्त ‘पद्मश्री’ को लौटाते हुए बिहार सरकार से भत्ता न लेने की ‘चौथी कसम’ भी खायी थी।