उन्माद
उन्माद एक भीड़ की मनोवृत्ति की प्रेरित दशा है। जिसमें सम्मिलित व्यक्ति समूह की सोच से प्रभावित एवं संचालित होता है। जिसमें उसकी व्यक्तिगत सोच का कोई स्थान नहीं होता है।
उन्माद की स्थिति में भीड़ का लक्ष्य उसका लक्ष्य बन जाता है , और उसका व्यवहार यंत्र चलित मानव की भांति भीड़ के व्यवहार में समाहित हो जाता है।
उन्माद की प्रवृत्ति उत्पन्न करने एवं उसके प्रसार में कुत्सित मंतव्य युक्त स्वार्थी तत्वों का हाथ होता है। जो एक सुनियोजित स्वार्थ पूर्ति हेतु षड्यंत्र का हिस्सा होता है। जिसके राजनैतिक, संप्रदायिक,जातिगत , अथवा व्यक्तिगत द्वेषपरक लाभ प्राप्ति कारक हो सकते हैं।
वर्तमान में जनसाधारण में भीड़ की मनोवृत्ति हावी है। जिसके प्रमुख कारण इंटरनेट सोशल मीडिया फेसबुक, टि्वटर, व्हाट्सएप, यूट्यूब ,इन्स्टाग्राम टीवी , इत्यादि माध्यम हैं , जिनकी इस प्रकार की मनोवृत्ति के प्रचार एवं प्रसार में प्रमुख भूमिका है।
आजकल व्यक्तिगत एवं राजनैतिक स्वार्थ के लिए छोटी-छोटी बातों को मुद्दा बनाकर उन्माद फैलाने की कोशिश की जा रही है।
किसी भी छोटे से विषय को राजनीति से प्रेरित सांप्रदायिक रंग देकर द्वेष फैलाने का प्रयत्न किया जा रहा है।
अभी हाल में एक आभूषण बनाने वाली कंपनी के विज्ञापन को सांप्रदायिक दुर्भावना से प्रेरित बताकर काफी उन्माद फैलाया गया।
इसके अलावा प्रदर्शित होने वाली एक फिल्म लक्ष्मी बॉम्ब के नामकरण को धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला बताकर आपत्ति जताई गयी ,
जिस पर निर्माताओं द्वारा उसके फिल्म के नाम से बॉम्ब शब्द हटाने के लिए बाध्य होना पड़ा।
इन तत्वों को विदित हो यह पटाखे का नाम कई वर्षों से प्रचलित शब्द है । इसे दीपावली मैं पूरे भारतवर्ष में चलाया जाता है , और इसी नाम से यह प्रसिद्ध है । यह भी विदित हो कि उस वक्त पटाखे के ऊपर महालक्ष्मी का चित्र होता है जिसे जलाकर फोड़ा जाता है , जो वर्षों से चला आ रहा है , जिस पर किसी को कोई आपत्ति अभी तक नहीं है।
लेकिन उस पटाखे की तीव्रता के प्रतीकात्मक स्वरूप पर फिल्म के नामकरण करने से उन्हें आपत्ति हो गई। इसके पीछे का कुत्सित मंतव्य तथाकथित तत्वों द्वारा धार्मिक भावना आहत होने के नाम पर फिल्म ना चलने देने की धमकी देकर फिल्म निर्माता से पैसा वसूलना ही है , उन्हें किसी भी धार्मिक भावना से कोई सरोकार नहीं है। यह एक कटु सत्य है।
इसके पूर्व में भी पद्मावती फिल्म के नाम पर आपत्ति प्रकट कर उसका नाम बदलकर पद्मावत करने के लिए निर्माता को बाध्य किया गया था
किसी भी घटना को धर्म एवं संप्रदाय से जोड़कर संवेदनशील बनाने का प्रयास किया जाता रहा है
चाहे वो पालघर में निरीह साधुओं की स्थानीय भीड़ द्वारा नृसंश हत्या कांड हो , या अन्य कोई घटना जो निंदनीय कृत्य हैं को किसी संप्रदाय , धर्म या जाति विशेष से जोड़ने की चेष्टा करना एक कुत्सित मंतव्य का परिचायक है।
सोशल मीडिया टि्वटर, फेसबुक, व्हाट्सएप के माध्यम से किसी भी घटना की वस्तुःस्थिति जाने बिना ट्रोल कर तूल दिया जाता है , और भड़काऊ बयानबाजी का सिलसिला चालू कर उन्माद फैलाने का प्रयास किया जाता है।
व्यक्तिगत एवं राजनीतिक स्वार्थ के लिए उन्माद फैलाकर अपना उल्लू सीधा करने वालों की देश में कोई कमी नहीं है।
जिसके फलस्वरूप आए दिन सड़क जाम लगाकर , रेलवे ट्रैक पर बैठकर उग्र आंदोलन कर यातायात एवं आवागमन बाधित किया जाता है।
और कुछ असामाजिक तत्व इस प्रकार के आंदोलनों में भीड़ को उकसा कर आगजनी से सरकारी एवं निजी वाहनों को जलाकर , मकान और दुकानों को जलाकर तथा बलात्कार , हत्या एवं लूटमार इत्यादि की वारदात किया करते हैं ।ऐसे प्रकरणों में भीड़ की संख्या अत्यधिक होने से प्रशासन भी इनको नियंत्रित करने में असफल सिद्ध होता है। और अपराधी भीड़ का फायदा उठाकर अपने कुकृत्य को अंजाम देकर साफ बच निकलते हैं।
करोड़ों रुपए की निजी एवं सरकारी संपत्ति को आग के हवाले कर हानि पहुंचाई जाती है।
जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव जनसाधारण पर पड़ता है।
देश में फैली बेरोजगारी के चलते , बेरोजगार युवाओं को सरकार एवं व्यवस्था के विरुद्ध भड़काकर उनमें उन्माद उत्पन्नकर , उनका उपयोग तथाकथित स्वार्थी तत्वों द्वारा अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए किया जाता है।
बेरोजगारी से त्रस्त निरीह युवा भी प्रलोभन से प्रेरित इन तत्वों के फैलाए कुत्सित मंत्वयों के जाल में फंस कर ,अपराधी बनकर , अपना जीवन बर्बाद कर लेता है।
अतः वर्तमान में उन्माद एक सुनियोजित षड्यंत्र है , जो देश एवं समाज दोनों को खोखला कर रहा है , जिसको रोकने के लिए विवेकपूर्ण निर्णय लेने की आवश्यकता है।
सर्वप्रथम हमें उन्माद फैलाने वालों को चिन्हित कर इन पर इसके मूल पर रोकथाम करनी होगी।
हमें समाज में छिपे उन भेड़ियों का पता लगा कर उन्हें देश के सामने उजागर करना होगा ,और जनसाधारण में उनके कुत्सित मंतव्यों को समझने के लिए जागृति पैदा करनी होगी , जिससे जनसाधारण उनकी बातों में आकर उनके अभियान का हिस्सा ना बनने पाऐं।
हमें बेरोजगार युवाओं को संगठित कर उनमें विभिन्न चर्चाओं के माध्यम से जागरूकता पैदा करनी होगी , कि वे इस प्रकार के उन्माद में शामिल ना होकर समय और जीवन बर्बाद होने से बचा सकें।
शासन द्वारा बेरोजगार युवाओं के लिए पर्याप्त रोजगार व्यवस्था करने का समयबद्ध कार्यक्रम एवं लक्ष्य निर्धारित करना होगा , जिससे बेरोजगार युवा समाज की मुख्यधारा से जुड़े रह सकें , और इस प्रकार पथभ्रष्ट होने से बच कर देश की उन्नति में अपना योगदान प्रदान कर सकें।
इसके अलावा हमें उन सभी मीडिया एवं समाचार पत्रों पर समय चलते रोक लगानी होगी , जो अफवाहें फैलाकर उन्माद का कारण बनते हैं।
हमें उन सभी तत्वों जो धार्मिक ,जातिगत , सांप्रदायिक एवं राजनैतिक स्वार्थ पूर्ति के लिए भीड़ में उन्माद फैलाकर अराजकता फैलाते हैं ,
को चिन्हित कर कठोर से कठोरतम दंड देने की व्यवस्था करनी होगी , जिससे इस प्रकार की प्रवृत्तियों की पुनरावृत्ति न हो सके।
यह तभी संभव है जब सरकार निरपेक्ष रूप से इस पर गंभीरता से विचार कर देश की जनता के हित ; एवं देश में सहअस्तित्व की भावना के संचार , एवं देश के सर्वधर्म समभाव रूप की रक्षा करने के लिए कृतसंकल्प हो।