उद्देश और लक्ष्य की परिकल्पना मनुष्य स्वयं करता है और उस लक्
उद्देश और लक्ष्य की परिकल्पना मनुष्य स्वयं करता है और उस लक्ष्य की प्राप्ति में कभी कभी दृग्भ्रमित भी हो जाता है ! परन्तु इन सपनों को साकार करने की दिशा में गुरु का योगदान अद्वितीय माना गया है ! उनकी पारखी नज़र, उनके अनुभव और उनकी दक्षता अपने शिष्यों को कहीं और नहीं भटकने देती है ! पर इस तरह की बातें सिर्फ आदि काल के इतिहासों में ही हमें मिलती है यह कहना तर्क संगत ना होगा ! आज भले ही गुरुओं की छत्र -छाया सम्पूर्ण अपने छात्रों के लिए समर्पित ना हो फिर भी इनके सलाह,निर्देश और हितोपदेश के वल पर ही शिष्यों के भविष्य की रूप रेखा बन पातीं हैं ! @परिमल