उदास राहें
उदास_राहें
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सूनी -सी ,उदास ये राहें
दीखती हैं दूर तलक
अंतहीन छोर तक |
सूनी -सूनी अँखियों से
निहारूं हर रोज़ ,
जब से गये उस राह से तुम |
ढूंढ़ती है अक़्स तुम्हारा
लिये अश्रु मोती नयनों में
उन सूनी गलियों में ,
जहाँ कभी घूमते थे
रजत -धवल चाँदनी में ,
साथ –साथ |
जब से गये तुम
हर पदचाप की
आहट का
विरह वेदना की थाप
छोड़ जाती है |
फिर से ..,
उन ,
उदास राहों को ताकना
उस अंतहीन छोर तक ,
उदास -बीरान नयनों संग ,
जहाँ ,
परछाईयाँ विलीन हो रहीं हैं
एक दूसरे में,स्मृति पटल पर
उफ्फ .!!ये सूनी उदास सी राहें ,
तुम्हारे –बिना ..||
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली ,पंजाब
©स्वरचित मौलिक रचना
14-02-2024