उदारवादिता
बड़ा शोर है आजकल उदारवाद शब्द का।
चलिए देखें हाल क्या है इसके मर्म का।
सामाजिक उदारवाद में समत्व मिलता रोता है।
खेतिहर मजदूर कभी किसान बन नहीं पाता है।
साम्यवाद में अव्यवहारिक प्रजातन्त्र खोल लेता है अपनी आँखें,
नेतृत्व परिवर्तन को अनावश्यक ऊर्जा क्षय की परम्पराएँ।
प्रजातन्त्र में तंत्र अपरिभाषित अनुशासनहीनता का है।
राजतंत्र में नृप क्रोध का पर्यायवाची और प्रजा की दीनता का है।
उदारता उदारवाद से गायब गदहे के सिर से सिंग की तरह।
उदारवादिता स्वयंभू-दण्ड, अरक्षित खोल उतरे अंडे की तरह।
वैयक्तिक उदारवाद में व्यक्तिगत स्पर्धा खुद से है ।
यहाँ उदारता भिक्षुक की निरीहता सा अद्भुद सा है।
धार्मिक उदारवाद में धर्म की परिभाषा हैसियत से तय।
यहाँ निरर्थक होता है उदारवाद का विजय या पराजय।
स्वतन्त्रता और स्वतंत्र-विकास में स्वार्थ, उदारवादिता का जनक ।
नहीं होने देता भाई-भतीजावाद के कारावास में डाले जाने की भनक।
धर्म एक मृत आस्था है अत: यहाँ उदारवाद पनपता नहीं।
रास्ते पर यहाँ चौराहे होते नहीं घिसी-पिटी लकीर है स्पर्धा ठनता नहीं।
विकास उदारवाद की ओर भेजता है हमें साझा बाजार और साझा उपयोग।
मानवता यहीं पलता है,फलता-फूलता हैन यह नहीं कोई संयोग।
जीने के बेहतर तरीके और अवसर।
सर्वदा मंथन नवीन सोच-विचार पर।
गतिशील रहता है हर क्षण,हरदम।
और रहता है ऊर्ध्व हरदम।
विकास साझा संस्कार, बुद्धि व प्रतिभा के।
धर्म अपने से भी बड़ा एक लकीर खींचकर रखता है विकास के आगे।
——————–5/01/22—————————————————