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30 Oct 2021 · 7 min read

उत्सव

जिंदगी कितने रंग दिखा सकती है ,कोई नहीं जानता। पल में धूप तो पल में बारिश। कभी कभी अचानक कुछ ऐसा भी घट जाता है कि यकीन करना भी मुश्किल होता है।
लगभग दो साल से अपना मानसिक संतुलन खो सा चुकी सुधा को अचानक काम करते देख चक्रेश परेशान थे। जब वह सोकर उठे तो सुधा बिस्तर पर नहीं थी। शायद वाशरूम में होगी,सोच वह वहीं आँख बंद कर बैठ इंतजार करने लगे।
थोड़ी देर में उन्हें कुछ पहिचानी सी सुगंध महसूस हुई।
“यह धूप तो सुधा लगाती थी कमरे में।”झटके से आँख खोल कर देखा। नहा कर भीगे वालों में सुधा कमरे में धूप लगा करी थी।धूपबत्ती की यह सुगंध सुधा को बहुत पसंद थी।
“अरे…ये क्या कर रही हो सुधा।…यहाँ बैठो।”जल्दी से उठ चक्रेश ने उसे सोफे पर बिठाना चाहा।
“आप जल्दी से फ्रेश हो लीजिए ,तब तक बाऊ जी को चाय दे आऊँ”सुधा ने उठते हुये कहा।
“तुम्हारी तवियत तो ठीक है न ?कमली इतनी जल्दी आ गयी आज?”
“कमली के आने में समय है ,मेरी नींद खुल गयी तो बना ली।चलो.जल्दी अब ,फ्रेश हो लीजिए।”बाँह पकड़ वाशरूम की और धकेलते हुये तौलिया पकड़ा दिया।चक्रेश चिंतित सा वाशरूम में चला गया। उसे चिंता हो रही थी सुधा के व्यवहार से। “डा. से सलाह करनी होगी” मन ही मन सोच वह फ्रेश होने लगा।
“बाऊ जी,आपकी चाय और अखबार ।”
सर पर पल्लू लिए खड़ी सुधा को देख कामतानाथ अचकचा गये।
“…तुम..।तुम ..ठीक हो ..। कमली …अरे कमली….सुन जरा।”हड़बड़ाते हुये सुधा के हाथ से चाय लेते हुये सवाल कर दिया साथ ही कमली को भी पुकार बैठे।
“हाँ,बाऊ जी ,मैं बिल्कुल ठीक हूँ।चिंता मत कीजिए।”कहते हुये बिस्तर की चादर उठाई और तकिये के कवर उतारने लगी।
“अरे,यह क्या कर रही हो बेटा..।कमली कर लेगी। चलो जाकर आराम करो।” अचरज से भरे कामतानाथ को सुधा का व्यवहार असामान्य लगा।
दो साल से बिस्तर पर पड़ी सुधा का अचानक यूँ उठकर काम करने लगना उन्हें परेशान कर रहा था साथ ही कुछ असामान्य घटना का संकेत भी दे रहा था।
“बाऊ जी, कमली के लिए बहुत सारे काम सोच के रखे हैं मैंने।” बिस्तर पर दूसरी चादर बिछ चुकी थी।
सुधा कमरे से निकली वैसे ही चक्रेश पिता के पास आया।
“बाऊ जी, सुधा का व्यवहार देखा?”
“हाँ बेटा, मैं समझ न पा रहा कुछ। ”
“बाऊ जी,मैं सोच रहा हूँ डा. से बात कर लूँ। कहीं सुधा का मानसिक संतुलन….।”
“ऐसा लग तो नहीं रहा बेटा। फिर भी एक बार डा. को दिखाना जरुरी है ।शायद दवाई में कुछ बदलाव करें।”
“ठीक है बाऊ जी, मैं डा. से समय फिक्स कर ….।”अभी चक्रेश की बात पूरी होती ,उससे पहले सुधा के गुनगुनाने की आवाज आई “इक प्यार का नगमा है।”
“अरे….यह हो क्या गया है सुधा को। लगता है सदमा के कारण इसे दौरा पड़ा है। तुम जल्दी से डा. से समय लेकर इसे दिखा लाओ। ”
“बाऊ जी ,मैं डा. को यहीं बुला लेता हूँ। दो साल पहले घटी घटना के बाद अपना संतुलन खो चुकी सुधा अचानक यह ..।”बात अधुरी छोड़ वह डा. को चिंतित हो फोन लगाने लगा
“अरे कमली,सुन ..तू जल्दी से रसोई साफ कर बर्तन मांज डाल।फिर सारे पर्दे उतार कर धुलने को डाल दे।बाद में मेरे काम में हाथ बँटा।समय कम है ,काम ज्यादा।”
सुधा की आवाज गूँजी
“यह किस काम की बात कर रही और किस समय की?”
“बाऊ जी,मेरी तो कुछ समझ न आ रहा। डा. कहीं बाहर गये हैं,दो दिन बाद आयेंगे। तब तक क्या करूँ?”
चक्रेश के चेहरे पर तनाव साफ देखा जा सकता था।
उन्हें दो साल पहले की घटना याद आई।
*****
उस दिन भी सुधा यूँ ही रोज की तरह काम कर रही थी। दीवाली आने वाली थी ।अतः बेटी केश्वी के साथ जोर शोर से लगी हुई थी तैयारी करने।
“अरे केशू बेटा,जरा वो बाऊ जी के कमरे के परदे उतार कर वह.नीले फूल वाले परदे लगा दे।…..अपने कमरे के भी बदल लेना।
और हाँ,बैठक में गहरे नीले रंग वाला परदे लगा देना उसी की मैंचिंग वाले सोफा कवर व दीवान की चादर भी ।”
“मम्मी,अभी दीवाली में चार दिन बाकी है अभी से …।” केश्वी झुंझलाई
“दीवाली में चार दिन है पर कल लड़के वाले आ रहे तुझे देखने। तब यह सब साफ सफाई आज जरुरी है,समझी।”
“माँ……कितनी बार कह चुकी हूँ कि नहीं करनी मुझे शादी-वादी।फिर क्यों यह नौटंकी की जा रही। तंग आ गयी हूँ मैं।”केश्वी क्रोध में होती तो मम्मी से माँ पर आ जाती।
“अभी बता रही हूँ,मैं नहीं आऊँगी किसी लड़के वड़के के सामने।” माँ बेटी में नोंक-झोंक शुरु हो गयी।जिसे चक्रेश ने समझा बुझा कर शांत किया।
दूसरे दिन लड़के वालों के सामने आ तो गयी पर न कुछ बोली न
रंग रूपतो पहले ही सुंदर था। आज हल्के से क्रोध.की लाली भी थी चेहरे पर जो चेहरे की मुस्कान मेंकशिश पैदा कर रही थी।लड़के वालों के न करने का कोई कारण न था।केश्वी के हाथ पर नारियल के साथ शगुन का चाँदी का सिक्का रख बाकी रस्में दीपावली के दो दिन बाद करने के लिए कहा।
चक्रेश ने भी बाऊ जी से सलाह कर लड़के को नेग दिया। सब खुश थे कि ये दीवाली असली खुशियाँ लेकर आई है।पर केश्वी खुश न थी।अलग ही तनाव लिए वह कमरे में चिंतित घूम रही
थी ।चेहरे से साफ लग रहा था कि वह निर्णय नहीं कर पा रही।
दूसरे दिन सब नार्मल रहा अपेक्षाकृत केश्वी कम बोल रही थी। स्त्री सुलभ संकोच समझ किसी ने ध्यान न दिया।
अगले दिन …
“मम्मी ,मैं एक घंटे के लिए नीलू के यहाँ जा रही हूँ। जाते वक्त सूट दर्जी के पास फिटिंग के लिए डाल दूँगी। साथ ही लाऊँगी सही करवा के तो थोड़ी देर हो जाएगी।”
“बेटा ,कल दीवाली है ।नीलू के यहाँ दो दिन बाद चली जाना।
और सूट को तो तू भी ठीक कर सकती है। मशीन रखी है।या दूसरा पहन लेना।”
“मम्मी ,नीलू ने बुलाया है ,बताया तो था आपको कि ओन लाइन हॉबी क्लासेज ज्वाइन की है उसने। मुझे जानकारी चाहिये कुछ। पास में टेलर भी है तो दोनों काम हो जाएँगे।”बैग कंधे पर टांगती वह दरवाजे की तरफ बढ़ गयी।
“ठीक है पर जल्दी आ जाना।”माँ ने रसोई से ही कहा।
तीन घंटे हो गये पर केश्वी का कुछ पता न था।सुधा को अब चिंता हुई। “आखिर ये लड़की इतनी देर क्यों लगा रही है?आजकल की लड़कियों को समय की कदर ही न है। कहीं कुछ हो तो न गया?त्यौहार के कारण तो वैसे ही भीड़ है बाजार में।…..नीलू को फोन लगाऊँ?” वह सोचमें पड़ी थी कि दरवाजे की घंटी बजी।उन्होंने लपक कर दरवाजा खोला।
देखा बाऊ जी और चक्रेश थे।
ओहह….आप लोग हैं।”
“तो और कौन होगा इस समय ? चक्रेश ने सुधा का चेहरा देखा तो पूछ बैठा –“क्या हुआ ?घबराई हुई क्यों हो?”
“वह….वो..केशू..केश्वी ..।”सुधा के मुँह से अल्फ़ाज ही न निकल रहे थे।
“क्या हुआ केशू को ?…।केशूऊऊऊऊऊऊऊऊऊ।”चक्रेश ने सुधा से पूछा और फिर आवाज लगाई
“जी पापा, मैं यहाँ हूँ।”दरवाजे से आवाज आई।
चक्रेश ने मुड़कर देखा तो सकते में रह गये।
“ये क्या पागलपन है केशू…क्या हुलिया बना रखा है लड़की।”केश्वी को देख सुधा भी सकते में आ गयी। माँग में सिंदूर ,गले में मंगलसूत्र ,जयमाल ,सर पर लाल चुनरी और साथ में था एक युवक।
” केशू….यह सब क्या है ?कौन है यह.लड़का ? “चक्रेश ने गुस्से में पूछा
“आपके दामाद कपिल। हमारे कालेज में हीं प्रोफेसर हैं। ”
“तुझे शर्म न आई बैगैरत। हमारे मुँह पर कालिख मलते…।”सुधा की आँखें फटी रह गयीं। आगे के शब्द गले में ही अटक गये। और अचानक वह बेहोश हो कर गिर पड़ी।
“माँ…..।”कहते हुये केश्वी जल्दी से लपकी
“वहीं रुक जाओ,घर के अंदर कदम मत रखना। आजसे तुममर गयी हमारे लिए। कहते हुये चक्रेश ने बाँह पकड़ कर केश्वी को घर की दहलीज से बाहर कर दरवाजे बंद कर लिए और सुधा को उठा कर कमरे में ले गये। पानी के छींटे डाले ..हिलाया डुलाया पर वह होश में न आई। उन्होंने डा. को फोन पर सुधा के बारे में बताते हुये जल्द आने को कहा उधर दरवाजे पर केश्वी की पुकार चालू थी।
“सून लड़की, अब तेरे लिए इस घर में कोई जगह नहीं और न हमारी जिंदगी में ही। बेहतर होगा यहाँ से चली जाओ।इससे पहले कि मैं कुछ गलत कर बैठूँ।”कपिल ने केश्वी को सँभाला और बाहर खड़ी गाड़ी की तरफ बढ़ गये।
डा.ने आकर चैकप कर के बताया कि “इन्हें कोई मानसिक आघात पहुँचा है। हो सकता है होश में आने पर यह संतुलन खो बैठे। ध्यान रखना आवश्यक है। ”
एक इंजेक्शन लगाया और फिर कुछ दवाईं लिख कर दी। साथ ही एक बार अस्पताल में दिखाने की सलाह भी दी।
सुधा ट्रीटमैंट से होश में तो आ गयी थी पर जैसे याद दाश्त खो गयी हो। न बोलती न कुछ कहती। सूनी आँखों से ताकती रहती।
उसकी हालत देख चक्रेश ने पूरे दिन के काम के लिए कमली को रख लिया। जिंदगी फिर चलने लगी पर अब न उसमें सुगंध थी न गुनगुनाहट,। कमली सब काम कर के सुधा के पास बैठ जाती। उससे बातें करती रहती। छोटी बड़ी ,पास पडौस की बातें। कुछ दिन पहले उसने कहा सुधा से ,आपकी बेटी माँ बन गयी है। बहुत खूबसूरत बेटे को जन्म दिया है।”
“सुधा की प्रश्नवाचक आँखो़ में हलचल हुई। एक क्षणिक सी उम्मीद रेख दिखी।
फिर देर तक छत ताकती रही सुधा। पर सवाल चेहरे और आखों से झलक रहे थे।
कमली ने चक्रेश को बताया । बाऊ जी को सब बताकरफिर डा।
से कंसल्ट किया।
“बीबी जी, कल तुम्हारी बेटी तुमसे मिलने आ रही। बाबू जी फोन पर कह रहे थे।”सुनकर सुधा के मन में ममता जाग उठी। “रात को ही तो डा. की सलाह पर चक्रेश ने आखिर बेमन ही सकी केश्वी को त्यौहार पर बुला लिया।
ओर आज सुबह से ही वह घर को सजा रही थी।
तभी दरवाजे की घंटी बजी ।डा. साहब थे।पूरा चैकप कर के कहा चिंता की कोई बात नहीं।
अभी डा. साहब हिदायतें देकर गये ही थे कि दरवाजे पर एक गाड़ी आकर रुकी।
केश्वी अपने नन्हें बेटे को गोद में लिये उतरी।कपिल भी साथ में थे। केश्वी को देख सुधा ने बाँहें फैला दी।
मम्मी कहते हुये केश्वी बच्चे को सँभाले लपकी।सुधा ने बेटे को ले सीने से लगा लिया।उसकी आँखें बरस पड़ी।
दूर कहीं लाउडस्पीकर पर गीत बज रहा था..
“एक वो भी दीवाली थी।इक ये भी दीवाली है ,
खिलता हुआ उपवन है ,हँसता हुआ माली है।”
दीवाली की अलग ही रौनक बिखरी हुई थी ।

स्वरचित ,मौलिक ,अप्रकाशित
मनोरमा जैन पाखी

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