Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 Jan 2022 · 4 min read

उत्तराखंड और हिमाचल का नाम क्या था आज से ढाई हजार साल पहले?

Lalita Kashyap:
उत्तराखंड और हिमाचल का नाम क्या था, आज से ढाई हजार साल पहले?

ढाई हजार साल पहले आपके क्षेत्र का नाम क्या था जानिए पाणिनि कालीन हिमालयी जनपद।
परिकल्पना डॉ हरीश चंद्र लखेड़ा , हिमालय लोग की प्रस्तुति नई दिल्ली
जी की पुस्तक से अध्ययन किया संक्षिप्त लेख।

आज से लगभग 2800 से 25 000 साल पहले के कालखंड की कल्पना कीजिए और विचार कीजिए कि उस कालखंड में आपके प्रदेश में जिले का नाम क्या रहा होगा?

इसका आधार महर्षि पाणिनि रचित अष्टाध्यायी है। यह महान रचना अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है, इसमें तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा विवरण मिलता है ।उस समय के भूगोल, सामाजिक ,आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक ,चिंतन खान-पान ,रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान -स्थान पर अंकित है ।सबसे पहले उन महान महर्षि पाणिनि को स्मरण कर उनके बारे में कुछ जानकारी देना उचित है।
महर्षि पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े व्याकरण को समस्त रूप देने में अतुलनीय योगदान दिया।उनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है , जिसमें 8 अध्याय और लगभग 4 सहस्त्र सूत्र है। उनका जन्म तत्कालीन भारत वर्ष के उत्तर -पश्चिम भारत के गांधार क्षेत्र के शलातुर नामक ग्राम में हुआ था। वहां काबुल नदी सिंधु में मिली है। उस संगम से कुछ मील दूर यह गांव था ।उसे अब लहूर कहते हैं।
उनके जन्म स्थान के अनुसार पाणिनी शालातुरीय भी कहे गए।
अष्टाध्यायी में स्वयं उन्होंने इस बात का उल्लेख किया है। पाणिनी की माता का नाम साक्षी पिता का नाम पाणिन और गुरु का नाम उपवर्ष था। बड़े होकर पाणिनि ने व्याकरण शास्त्र का गहरा अध्ययन किया। पाणिनि ने शब्द विद्या के आचार्य गणों के ग्रंथों का अध्ययन किया और उनके परस्पर भेदों को देखा तो उनके मन में व्याकरण शास्त्र को व्यवस्थित करने का विचार आया।
पाणिनि के समय को लेकर इतिहासकार एकमत नहीं है। महर्षि पाणिनि का कालखंड जो भी हो, इतना तो तय है कि वह आज से लगभग 2800 से 2500 साल पहले हुए थे। महर्षि पाणिनि के जीवन काल में उत्तर भारत में अनेक जनपद थे। इनमें प्रमुख कूलिंद जनपद था । मद्रजन तबके तक्षशिला के दक्षिण पूर्व में था राजधानी सा कल यानी वर्तमान सियालकोट में थी। शिवि -उशीनगर मध्य जन्म के दक्षिण में था। भरत जनपद दक्षिण पूर्वी पंचनद में था। आज के हरियाणा के थानेसर, कैथल ,करनाल, पानीपत का भूभाग था। कुरु जनपद दिल्ली मेरठ का क्षेत्र इस जनपद के अंतर्गत था। इसकी राजधानी हस्तिनापुर थी। प्रत्यय गृह जनपद यह गंगा जी और राम गंगा के मैदानी उपत्याका में प्रत्यक्ष पांचाल जनपद था।

अब आज हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की बात करते हैं।

आज के कुल्लू कांगड़ा क्षेत्र को उस समय त्रिगर्त जनपद को आज हिमाचल प्रदेश कहा जाता है। यह जनपद सतलुज ब्यास और रावी इन तीन नदियों की पर्वतीय उपत्यका में थे। इसके अंतर्गत वर्तमान चंबा से कांगड़ा तक का क्षेत्र था। त्रिगर्त इसलिए कहते थे कि यह क्षेत्र 3 नदियों से घिरा था। उत्तराखंड का सबसे प्रमुख नाम भारद्वाज था ।यह नाम महर्षि भारद्वाज के नाम पर पड़ा था। आज से ढाई हजार साल पहले गढ़वाल के अधिकतर क्षेत्र का नाम भारद्वाज और कुमायूं के अधिकतर क्षेत्र का नाम आत्रेय था। जौनसार क्षेत्र का नाम तामस व कालकूट था। उत्तरकाशी चमोली व पिथौरागढ़ के सीमांत भौंटातिक क्षेत्रों का नाम तंगण व रंकू था। पानी नीचे अष्टाध्याई के अनुसार कुलीन उशीनगर इस क्षेत्र का प्रमुख जनपद था।
विक्रमी पूर्व पर पांचवी- चौथी सदी में कुलिंद जनपद का दूसरा नाम उशीनगर भी था। यह प्रदेश मध्यम देश की उत्तरी सीमा पर स्थित प्रत्यत जनपद था। ऐतरेय ब्राह्मण, कौशीताकि ,उपनिषद और गोपथ ब्राह्मण में लिखित साक्ष्यों के आधार पर इस जनपद का प्राचीन नाम उशीनगर था।
हरिद्वार क्षेत्र के पर्वत को तब उशीर गिरी कहा जाता था। उशीर गिरी से सटे जनपद को महाभारत में उशीनर कहा गया है। पुरानी पुरावृत्त के अनुसार राजा उशीनर गंगा -जमुना के प्रदेश के नरेश अनु का वंशज था। उशीनगर के पुत्रों ने पंच नद में शिवि, यौधेय, नवराष्ट्र, कृमिल और अम्वष्ट जनपदों की स्थापना की। इसलिए पंच नद के शिवि ,कुशीनगर के अलग पहचान के लिए पर्वतीय कुलिंद जनपद को कुलिंद उशीनगर कह सकते हैं। इस कुलिंद उशीनगर के अंतर्गत छः प्रदेश थे।

पहला प्रदेश तामस था। यह सतलुज और टोंस नदी की पर्वतीय उपत्यका में था। इस प्रदेश में यमुना और उसकी सहायक नदियों के तटों पर यज्ञ करके राजा उशीनर को इंद्र से भी उचित स्थान प्राप्त हुआ था।

दूसरा प्रदेश कालकूट था। –यह यमुना की दक्षिणी उपत्याका में था इसके अंतर्गत आज के कालसी देहरादून ,स्त्रुघन क्षेत्र थे , इस प्रदेश का वर्तमान प्रतिनिधि कालेसर- कालसी है।

तीसरा प्रदेश तंगण था—यह क्षेत्र वर्तमान उत्तरकाशी और चमोली जिलों का भौंटातिक ‌दवात प्रदेश था। जिसे महाभारत और मार्कंडेय पुराण में तंगण- परतंगण जाति भूमि बताया गया है।

चौथा प्रदेश भारद्वाज था–इसकी पहचान वर्तमान टिहरी और पौड़ी गढ़वाल से की जाती है। पाणिनी ने दोबारा भारद्वाज का उल्लेख किया है। गंगाद्वार यानी हरिद्वार के निकट प्रदेश में भारद्वाज ऋषि और उनके शिष्यों के बस जाने से प्रदेश का नाम भारद्वाज पड़ा।

पांचवा प्रदेश रंकू—इस प्रदेश की पहचान पिंडर नदी की उपरली उपत्यका यानी आज के पिथौरागढ़ के भौंटातिक प्रदेश से की जाती है।

छोटा प्रदेश आत्रेय—इस क्षेत्र की पहचान वर्तमान अल्मोड़ा, नैनीताल जिले से हो सकती है। पाणिनि ने आत्रेय को भारद्वाज की शाखा माना है। मार्कंडेय पुराण की जनपद सूची के अनुसार भारद्वाज और आत्रेय जनपद पड़ोसी थे। भारद्वाज की पहचान गढ़वाल से की जाती है। इस तरह आत्रेय की पहचान कुमायूं से लेकर तराई से हो सकती है।

ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश।

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 2 Comments · 530 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
3377⚘ *पूर्णिका* ⚘
3377⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
चाय की घूंट और तुम्हारी गली
चाय की घूंट और तुम्हारी गली
Aman Kumar Holy
"रोशनी की जिद"
Dr. Kishan tandon kranti
अपनी आवाज में गीत गाना तेरा
अपनी आवाज में गीत गाना तेरा
Shweta Soni
वाह मेरा देश किधर जा रहा है!
वाह मेरा देश किधर जा रहा है!
कृष्ण मलिक अम्बाला
*कैसे बारिश आती (बाल कविता)*
*कैसे बारिश आती (बाल कविता)*
Ravi Prakash
ये बेकरारी, बेखुदी
ये बेकरारी, बेखुदी
हिमांशु Kulshrestha
मुर्दे भी मोहित हुए
मुर्दे भी मोहित हुए
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
When the ways of this world are, but
When the ways of this world are, but
Dhriti Mishra
*** अंकुर और अंकुरित मन.....!!! ***
*** अंकुर और अंकुरित मन.....!!! ***
VEDANTA PATEL
प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
Shaily
'व्यथित मानवता'
'व्यथित मानवता'
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
इल्म हुआ जब इश्क का,
इल्म हुआ जब इश्क का,
sushil sarna
सफ़र ए जिंदगी
सफ़र ए जिंदगी
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
#ग़ज़ल :--
#ग़ज़ल :--
*Author प्रणय प्रभात*
सजा दे ना आंगन फूल से रे माली
सजा दे ना आंगन फूल से रे माली
Basant Bhagawan Roy
हम जो भी कार्य करते हैं वो सब बाद में वापस लौट कर आता है ,चा
हम जो भी कार्य करते हैं वो सब बाद में वापस लौट कर आता है ,चा
Shashi kala vyas
एक उड़ान, साइबेरिया टू भारत (कविता)
एक उड़ान, साइबेरिया टू भारत (कविता)
Mohan Pandey
नारी
नारी
Nitesh Shah
*आस्था*
*आस्था*
Dushyant Kumar
धन्य सूर्य मेवाड़ भूमि के
धन्य सूर्य मेवाड़ भूमि के
surenderpal vaidya
चलते जाना
चलते जाना
अनिल कुमार निश्छल
अर्धांगिनी सु-धर्मपत्नी ।
अर्धांगिनी सु-धर्मपत्नी ।
Neelam Sharma
"किसान"
Slok maurya "umang"
हिंदी दिवस पर हर बोली भाषा को मेरा नमस्कार
हिंदी दिवस पर हर बोली भाषा को मेरा नमस्कार
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
सिंहावलोकन घनाक्षरी*
सिंहावलोकन घनाक्षरी*
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
तूफ़ान और मांझी
तूफ़ान और मांझी
DESH RAJ
भूल भूल हुए बैचैन
भूल भूल हुए बैचैन
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
गुड़िया
गुड़िया
Dr. Pradeep Kumar Sharma
दंभ हरा
दंभ हरा
Arti Bhadauria
Loading...