उड़ियाना छंद ( गोविंद ध्यान कर रे )
उड़ियाना छंद
12/10=22
यति के पहले व बाद में
त्रिकलअंत में 1 गुरू
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दुनिया के सकल स्वाद,छोड़ अब न चख रे ।
कर ले गोविंद ध्यान,किसी को न तक रे ।
छोड सभी फिकर सोच,कौन यहाँ अपना ।
पूरा संसार झूठ,नींद लगा
सपना।
कर ले कुछ नेक काम,अंत का सुधरना।
माया को त्याग गुरू,रामभजन करना।
पाया सब ठीक मान,चला सही लक रे।
कर ले गोविंद ध्यान, किसी को न तक रे।
हँसी बाँट बाँट सदा,आयु गई रस में ।
कैसी कब कहाँ कहाँ,खूब खाईं कसमें।
प्रीत जता मीत मिले,मिले फिर बिछड़ना ।
काम सभी साथ साथ,और
कभी लड़ना ।
छूट गए मीत सभी, टूट टूट बिखरे।
साथ छोड़ चली गई, जीवन की पिक रे ।
बीत गई हो न दुखी, रहा कहाँ हक रे ।
कर ले गोविंद ध्यान,किसी को न तक रे।
शिथिल हुए अंग अंग, कठिन संग रहना।
यौवन ही सिर्फ एक,सही रहे गहना।
कैसे अब समय कटे,बड़ा कठिन जग में ।
सगे गैर बने पेश,आवत डग डग में ।
स्वारथ से रहे देख,आस लगा धन की ।
दे दो कुछ नगद अभी,बात बने मन की ।
जैसे कुछ दबा रखा, करें सभी शक रे ।
कर ले गोविंद ध्यान, किसी को न तक रे।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
20/11/22