उड़ने लगी गगन में।( काव्य गीत)
उड़ने लगी गगन में।( काव्य गीत)
प्रेम सुधा जब बरसी, ह्रदय धरा पर।
उड़ने लगी गगन में,
न रही धरा पर।
स्वर बने मेरे गीत,
गीत काव्य बन गए।
जीवन की धूप में,
तुम छाँव बन गए।
पा लिया दिल को मैंने,
तेरे नाम कराकर।
खोकर ही पाना है,
रीत प्रेम की,
हार में ही मिलती है,
जीत प्रेम की।
जीत गई मैं प्रियतम,
दिल तुमपे हराकर।
जैसे किसी निर्धन को, रत्न मिल गया।
भटके हुए फूलों को,
चमन मिल गया।
प्रिया गाए प्रेम गीत,
प्रीत तेरी पाकर।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
सर्वाधिकर सुरक्षित
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78