“उच्छृंखलता सदैव घातक मानी जाती है”
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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स्पष्टतः मनमानी प्रवृतिओं को अशिष्टता के दायरों में रखा गया है ! उच्छृंखलता को एक संक्रामक रोग ही कहेंगे जिसे कोई अस्वीकार नहीं कर सकता !
इनकी प्रवृतियाँ बेतरतीब होती हैं ! हर क्षण व्यग्रता के आगोश में ये रहते हैं ! उपद्रवी मानसिकता से ग्रसित, अनियंत्रित और उपद्रवी विचारधारा इनके मानसपटल पर घूमते रहते हैं !
कहते हैं , “ अच्छी दोस्ती ,अच्छा परिवेश और अच्छे सत्संग से इस रोग का इलाज़ हो सकता है !” पर इसके बावजूद भी अनेकों लोग हैं जिन्हें उच्छृंखलता का रोग साधारण नहीं रह गया है , बल्कि यह विषाक्त “ कैंसर ” के रूप में अपना आशियाना बना रखा है !
इस उच्छृंखलता संक्रामक के लाखों मरीज हैं ! यह वेरीएंट किसी खास उम्र के लोगों को ग्रसित नहीं करता है ! बहुत कम ही सही पर सब उम्र के लोग इसमें संमलित हैं ! बात यथार्थ है ,कि इस उच्छृंखलता के संक्रामक रोग को अधिकाश लोग अभिशाप नहीं वरदान मानते हैं !
आज ही मित्रता के बंधन में बंधे हैं ! ना आभार ,ना अभिनंदन ना अनुराग और ना जिज्ञासा और अनाप -सनाप मैसेंजर के पन्नों को दूषित करते चले गए ! कभी राजनीतिक अफवाहें ,धार्मिक उन्माद और उल -जलूल पोस्टों को पोस्ट करके अपनी महान उच्छृंखलता का परिचय देने लगते हैं ! शालीनता भरे दो शब्द तो लिखते ,तो कुछ सकारात्मक अनुराग छलकता !
उच्छृंखलता की पराकाष्ठा तो तब देखने को प्रतीत होती है जब हम किसी दूसरे को अपना पोस्ट टैग करते हैं ! माना कि आप उत्कृष्ट धनुर्धारी हैं ! आपके पराक्रम को हम आपके ही टाइमलाइन के रणक्षेत्र में दृश्यावलोकन कर ही लेंगे ,पर अपनी उपलब्धियों का प्रदर्शन दूसरे के टाइम लाइन पर क्यों ?
यह शायद कुछ लोगों में ही व्याप्त हैं , पर अनोखे लोगों की कमी नहीं है ! उच्छृंखलता की मिसालें हमें WhatsApp के रंगमंचों पर भी देखने को मिलते हैं ! यहाँ भी बेफ़जुल पोस्टों की भरमार लगी रहती है ! बात तो कभी करेंगे नहीं ,पर अपनी उच्छृंखलता से कभी बाज नहीं आएंगे !
इस उच्छृंखलता रूपी कैंसर से बचने के लिए सिर्फ शिष्टाचार ,मृदुलता और शालीनता का नियमित रूपेण इन्जेक्शन लगबाना पड़ेगा नहीं तो दोस्त हमसे बिछुड़ जाएंगे और बिछुड़ने का कारण भी नहीं हमें बताएंगे !
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस पी कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
25.12.2022.